अक्षत गुप्ता : द हिडन हिंदू (हिंदी अनुवाद)(भाग 3)| DREAMING WHEELS
इस भाग में अक्षत गुप्ता जी हमारा परिचय सात चिरन्जीवियों से कराते हैं और उनमें से दो चिरन्जीवियों से मिलवा भी देते हैं। वे हैं- परशुराम और अश्वत्थामा।
पुरातन वर्तमान में
अगला सेशन शुरू हो गया है। शाहिस्ता ओम से सुषेण के अलावा निभाई अन्य भूमिकाओं के बारे में पूछती है। तुरंत ही स्क्रीन पर बहुत सी जगहें और घटनायें बदलने लगती हैं। सभी विभिन्न युगों और शताब्दियों को दर्शा रही थीं। अपने सभी रूपों को याद करते ही ओम के चेहरे पर अनेकों भाव प्रकट होने लगे और दुःख से उसकी आँखें नम हो गईं। वह बहुत विचलित था क्योंकि वह जान गया था कि उसका रहस्य सभी को पता चलने वाला है।
स्क्रीन पर अनेक दृश्य चल रहे थे। उनमें से तीन ऐसे व्यक्ति थे जो बार-बार दिखाई दे रहे थे – एक सुंदर महिला, विभिन्न शस्त्रों के साथ एक व्यक्ति और तीसरा एक भयंकर क्रोधी व्यक्ति जो युद्ध के लिए तैयार दिखाई देता। अभिलाष बताता है कि ये परशुराम और अश्वत्थामा हैं, दोनों हमारे ग्रन्थों में उल्लेखित सात चिरन्जीवियों में से हैं। अन्य चिरन्जीवियों में हैं राजा बलि, विभीषण, वेदव्यास, कृपाचार्य और श्रीहनुमान जी।
इसी समय रॉस द्वीप के जंगल में आधुनिक हथियारों से लैस एक व्यक्ति की आँखें किसी चीज पर गड़ी हुई थीं। उसी समय सुविधा केंद्र में एक सुरक्षित कमरे में एक वृद्ध सफेद स्क्रीन को घूर रहा था जिसमें प्रयोगशाला का दृश्य दिखाई दे रहा था। उसने अपना फोन रीडॉयल किया और स्क्रीन पर फोन उठाकर सिर हिलाकर ‘ जी सर ‘ कहते डॉ. श्रीनिवासन को देखा।
इधर पूछताछ कक्ष में कभी स्क्रीन पर ओम एक धनाढ्य व्यक्ति तो कभी दरिद्र दिखाई पड़ रहा है। ओम बता रहा है कि उसने हर प्रकार का जीवन जिया है। कभी एक राजा तो कभी दास, कभी अनेकों से घिरा हुआ तो कभी बिल्कुल अकेला। अनेक नामों से भी। फिर शाहिस्ता उससे विष्णु गुप्त के विषय में पूछती है। वह बताता है कि वह चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रमुख सलाहकार था। तब तक परिमल कागज पर सुषेण, चाणक्य और वर्तमान समय के मध्य समयान्तराल की गणना करके डॉ. बत्रा को देता है। वे कहते हैं कि इसलिए तो मैं इसे असम्भव कह रहा हूँ और उन्होंने कागज डॉ. श्रीनिवासन को दे दिया। वे कागज को लेकर बाहर चले जाते हैं।
इसी बीच एल. एस. डी. उस नक्शे का अर्थ ढूंढ रही है। उधर जंगल में वह आदमी अपने उपकरणों की सहायता से टेबलेट पर सुविधा केंद्र की 3डी छवि देख रहा है और आने-जाने वालों पर नजर रख रहा है। डॉ. श्रीनिवासन उस कागज के टुकड़े को लेकर उस गुप्त कमरे में जाते हैं।
परीक्षण कक्ष में शाहिस्ता ओम से पूछ रही है कि वह जो बता रहा है इसका उसे मतलब पता है या नहीं? वह कहना चाह रहा है कि वह युगों से जिंदा है। ओम उन्हें कहता है कि वह सतयुग से जीवित है और अभी कलियुग में उनके सामने है। अभिलाष उससे पूछता है कि द्वापरयुग में वह कौन था? ओम बताता है कि उसके अनेक नामों में से द्वापरयुग से सम्बंधित नाम विदुर था। उस समय स्क्रीन पर विदुर, धृतराष्ट्र और गांधारी दिखाई देते हैं। शाहिस्ता ओम से फिर प्रश्न करती है- तुम कब से जीवित हो ? तुम्हें जो कुछ भी याद है हमें सब बताओ।
ओम जानता है कि वह फँस चुका है और उन्हें बताने के सिवा और कोई चारा नहीं है, अतः वह शुरू करता है।
पुरानी व्याख्या
डॉ. श्रीनिवासन लॉकर से लाई गई पुस्तक अपने साथ लाए थे। उन्होंने वह पुस्तक उस वृद्ध आदमी को दे दी। उसे देखते ही उसकी आँखों में चमक आ गई पर पन्ने पलटने के बाद वह क्रोध में बदल गई। उसने पूछा कि इस पुस्तक का दूसरा भाग कहाँ है? डॉ. श्रीनिवासन कहते हैं कि उन्हें लॉकर से केवल यही पुस्तक मिली है। वे बुरी तरह डरे हुए हैं। बूढ़ा व्यक्ति पुस्तक उनके मुंह पर फेंकते हुए कहता है कि इसमें केवल सम संख्या वाले पृष्ठ हैं। विषम संख्या वाले पृष्ठ दूसरी पुस्तक में हैं। दोनों एक-दूसरे के बिना बेकार है। तब डॉ. श्रीनिवासन बताते हैं कि एक नक्शा भी मिला है जिसे उन्होंने एल. एस. डी. को सुलझाने के लिए दिया है। तब बूढ़ा व्यक्ति कहता है कि वह नक्शा ही दूसरी पुस्तक की चाबी है। उसे सुलझाने में कितना समय लगेगा मुझे बताओ। फिर डॉ. श्रीनिवासन बाहर आ गए।
द्वीप के जंगल में दूसरा व्यक्ति हाथ में एक पुरानी चाबी लेकर पहले व्यक्ति के साथ आ गया है। वे इमारत में धावा बोलने ही वाले हैं। दोनों अपनी पूरी योजना बना चुके हैं।
इधर एल. एस. डी.नक्शे वाली जगह ढूंढने में कामयाब हो जाती है और खुशी से चिल्लाती है तभी डॉ. श्रीनिवासन कक्ष में प्रवेश करते हैं। उन्हें देखकर उसे अपनी गलती का एहसास होता है। वे उसे बाहर ले जाते हैं तब वह उन्हें नक्शे वाली जगह जो कि श्रीलंका में स्थित एक पुरानी गुफा है, के बारे में बताती है। वे उसे वापस परीक्षण कक्ष में भेज देते हैं और खुद उस बूढ़े आदमी के पास चले जाते हैं।
प्रयोगशाला में ओम शाहिस्ता के प्रश्नों का उत्तर दे रहा है। वह बताता है कि एक दिन उसने जब अपनी आँखें खोली तो वह तीन ऋषियों के साथ कुटिया में था, जो अनुयायियों से भरी पड़ी थी। उसे अपने विषय में कुछ भी, यहाँ तक नाम भी पता नहीं था। वहाँ उन तीन ऋषियों के अलावा एक अन्य ऋषि भी थे। उन्होंने बताया कि उनका नाम देवोदास है, उन्हें धन्वन्तरि और काशीराज के नाम से भी जाना जाता है। वे ओम को बताते हैं कि उसकी आयु 40 वर्ष है और समझो कि संसार में पहला दिन। उसका शरीर घावों से भरा हुआ है। उसे ‘मृत्युंजय’ के नाम से जाना जाएगा।
वहाँ रहते हुए ओम को ज्ञात होता है कि उन तीन ऋषियों में से एक सुश्रुत थे। उनकी आयु 49 वर्ष थी। वे काशीराज द्वारा आयुर्वेद का ज्ञान प्रदान करने के लिए चुने गए दस संतो में से एक थे। अन्य दो ऋषि थे – देवव्रत और नागेंद्र। ओम बताता है कि उन्होंने मेरी शल्य चिकित्सा भी की। धीरे-धीरे मैं ठीक हो गया और उनसे चीजें सीखता गया। धन्वंतरि के शिक्षणों का संकलन सुश्रुत द्वारा किया गया जिसे हम ‘सुश्रुत संहिता’ के नाम से जानते हैं।
फिर डॉ. बत्रा और अभिलाष सुश्रुत और धन्वन्तरि के बारे में सभी को बताते हैं। दूसरी तरफ डॉ. श्रीनिवासन उस बूढ़े आदमी को नक्शा और वह कागज देते हैं जिस पर नक्शे वाला स्थान चिह्नित था। अब डॉ. श्रीनिवासन का नया काम वीरभद्र को उस चिह्नित स्थान पर भेजना और जो कुछ मिले उनके पास लाना था।
कुछ देर में उन दो छिपे आदमियों ने वीरभद्र को हाथ में नक्शा लिए अपने आदमियों के साथ बाहर आते देखा। उन्होंने योजना में बदलाव किया और निश्चय किया कि अब उनमें से एक इमारत की घटनाओं पर नजर रखेगा और दूसरा वीरभद्र का पीछा करेगा। अब वीरभद्र हेलीकॉप्टर में और एक आदमी तीव्र गति वाली नाव में आगे बढ़ रहे थे।
डॉ. श्रीनिवासन पूछताछ कक्ष में लौट आए। ओम ने उनकी उपस्थिति को महसूस कर लिया और स्क्रीन पर उनकी छवि उभर आई जिसे देखकर वे चिल्लाने लगे। ओम भी उन्हें घूरने लगा। शाहिस्ता जो डॉ. श्रीनिवासन की ओर बढ़ रही थी उनका इशारा पाकर वापस अपनी जगह पर बैठ गईं और ओम को आगे बढ़ने का संकेत दिया।
मृत संजीवनी
ओम बताता है कि सुश्रुत संहिता को संकलित करने में एक साल से भी ज्यादा समय लग गया। सुश्रुत बोलते जाते और नागेंद्र लिखते जाते थे। देवव्रत किसी वस्तु की आवश्यकता होने पर उन्हें देते साथ ही मेरी देखभाल भी करते क्योंकि मेरी कई बार शल्य चिकित्सा की गई थी और मुझे बहुत देखभाल की आवश्यकता थी। धीरे-धीरे मैं पूरी तरह स्वस्थ होने लगा। मुझे केवल एक बात परेशान करती थी। सुश्रुत रोज़ रात को काशीराज की कुटिया में कुछ समय के लिए जाते थे। मैंने इस विषय में देवव्रत से पूछा पर उन्हें इस बारे में पता नहीं था पर नागेंद्र ने कहा कि वह मृत संजीवनी का ज्ञान प्राप्त करने जाते हैं। वह कई बार उनके पीछे गया है और उन्हें उसकी प्रक्रिया लिखते देखा है। यह मृत शरीर को जीवित करने की प्रक्रिया है। उन्होंने उसे भी एक वर्ष पूर्व मृत ही देखा था। काशीराज ने उसे इसी प्रक्रिया द्वारा नया जीवन दिया है। यह सब बताते हुए नागेंद्र घृणा से भरा हुआ लग रहा था।
कुछ समय पश्चात जब सुश्रुत वापस आए तो मैंने उनसे अपने बारे और मृत संजीवनी के बारे में पूछा। सुश्रुत मेरे प्रश्नों को सुनकर ही समझ गए कि क्या हुआ होगा। उन्होंने मुझे समझाया कि तुम काशीराज के पुत्र हो। तुम्हें यह जीवन उपहार में मिला है। तुम्हें अब जिंदा रहने के लिए अन्न व जल की आवश्यकता नहीं है। इसलिए तुम्हें मृत्युंजय नाम दिया गया है। मृत संजीवनी एक ऐसी पुस्तक है जो सही हाथों में हो तो मानवता के लिए वरदान है परंतु गलत हाथों में हो तो एक शाप है। इस पुस्तक को पूरा कर लिया गया है। कल गुरुजी सब बता देंगे। कल का दिन महत्वपूर्ण है।
दूसरे दिन सवेरे मैंने आँखें खोली तो कुटिया में हलचल थी। गुरुजी ने सभी को भोज के लिए आदेश दिया। थोड़ी देर में नागेंद्र वापस आया और अपनी चटाई के नीचे से कुछ पत्तियाँ लेकर गया। कुछ समय बाद गुरुजी ने सभी को सम्बोधित करते हुए कहा कि मैंने आपको अपना ज्ञान प्रदान किया है। अब आप बाहर जाकर मानव जाति की सेवा करें। प्रस्थान से पूर्व भोज का आनन्द लें। एक वर्ष बाद मैं फिर से आपसे मिलना चाहूंगा।
काशीराज ने देवव्रत और नागेंद्र से भोजन परोसने को कहा और सुश्रुत और मुझे अपनी कुटिया में बुलाया। वहाँ उन्होंने सुश्रुत को मुझे अपने साथ रखकर संसार के तौर – तरीके सिखाने और मृत संजीवनी की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी। मैंने उनसे अपने बारे में भी पूछा। जैसे ही वे उत्तर दे पाते तभी नागेंद्र वहाँ खीर लेकर आ गया और गुरुजी से जल्दी खाने को कहा। मैंने जैसे ही अपना कटोरा लेकर खीर खानी चाही , उन्होंने मुझे यह कहकर मना कर दिया कि तुमने 317 दिनों से कुछ नहीं खाया , अतः तुम्हें और नौ दिन गुजरने के बाद ही कुछ खाना है। फिर जैसे ही उन्होंने खीर खाई उनका चेहरा अजीब सा हो गया। उन्होंने इशारे से सुश्रुत को खीर खाने से मना कर दिया। खीर में विष मिलाया गया था। सुश्रुत के कुछ करने से पहले ही नागेंद्र ने पहले उन पर फिर गुरुजी पर चाकू से हमला कर दिया। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। सुश्रुत ने मुझे मृत संजीवनी लेकर भाग जाने को कहा। मैं भागता रहा और पहाड़ी के नीचे पहुंचकर मैंने कई दिनों तक गुरुजी और सुश्रुत की प्रतीक्षा की पर कोई नहीं आया। एक वर्ष इधर-उधर भटकने के बाद मैं पुनः उस पहाड़ी पर गया पर सिवाय कंकालों के कुछ भी नहीं मिला।
आखिर कौन है जो डॉ. श्रीनिवासन को भी आदेश दे रहा है और उन पुस्तकों में ऐसा क्या है जिसके लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार है ! यह जानने के लिए जरूर पढ़ें भाग 4 ।
चुनिंदा पंक्तियाँ :
# ओम और महिला के बीच एक विपरीत चिह्न यह था कि ओम कभी बूढ़ा नहीं दिखा; जबकि वह हर आयु, जैसे किशोरी, तरुणी, परिपक्व महिला और वृद्ध स्त्री की तरह दिखाई दी। महिला का जीवन-रहित शरीर तीन अलग-अलग युगों में, तीन अलग-अलग वेशभूषा में ओम के साथ दिखाई दिया। जब तीसरी बार वह मृत दिखाई दी, ओम ने उसी क्षण अपनी आँखें खोल दी थीं।
# मैं सतयुग से जीवित हूँ। त्रेतायुग और द्वापरयुग से होते हुए अब मैं कलियुग में आपके सामने हूँ।
# सुश्रुत संहिता – सुश्रुत द्वारा लिखी गई शल्य चिकित्सा पर एक महत्वपूर्ण उत्कृष्ट संस्कृत भाष्य है और आयुर्वेद के तीन मूलभूत ग्रन्थों में से एक है। यह दो भागों में बंटा हुआ है – ‘पूर्व तंत्र’ और ‘उत्तर तंत्र’ । इसके 184 पाठों में 1,120 बीमारियाँ, 64 खनिज स्त्रोत की सामग्रियों एवं 57 पशु स्त्रोत पर आधारित सामग्रियों का वर्णन है।
# यदि यह पुस्तक सही हाथों में हो तो यह उन लोगों के लिए वरदान है, जो पहचान करने योग्य हैं कि कौन पृथ्वी पर मानवता की सेवा करने हेतु सदैव जीवित रहने चाहिए और किन्हें मिटा देना चाहिए ! इसके विपरीत, यह पुस्तक यदि गलत हाथों में हो तो एक शाप है।
अगर आपने भाग 1, 2 और 3 नहीं पढ़ा है तो आप उसे इस लिंक में क्लिक करके पढ़ सकते हैं👇