अक्षत गुप्ता : द हिडन हिंदू (हिंदी अनुवाद)(भाग 4)| DREAMING WHEELS

अक्षत गुप्ता द हिडन हिंदू (हिंदी अनुवाद) (भाग 4)

अक्षत गुप्ता : द हिडन हिंदू (हिंदी अनुवाद)(भाग 4)| DREAMING WHEELS

प्रथम प्रकोप

वीरभद्र श्रीलंका पहुंच गया है और वांछित जगह पंहुचने के लिए उसके साथ गाइड है। वीरभद्र डॉ. श्रीनिवासन को फोन पर बताता है कि वे उस जगह से एक मील दूर हैं और गाड़ी आगे नहीं जाएगी। तब डॉ. श्रीनिवासन उसका हौसला बढ़ाते हुए वहाँ जो भी मिले उसे लाकर देने को कहते हैं और खुद उस बूढ़े आदमी के पास जाते हैं। बूढ़ा आदमी उनसे कहता है कि जब पुस्तक मिली नहीं है तो तुम यहाँ क्या करने आए हो?
इधर वीरभद्र का पीछा करने वाला अपने दूसरे साथी जो रॉस द्वीप में है, से संपर्क कर श्रीलंका में जो हो रहा था उससे अवगत कराता है।

जब वीरभद्र गुफा से बाहर आया तो उसके पास धातु की सन्दूक थी। उसके अंदर उसे पुस्तक और अन्य कई वस्तुएं मिली। उसने डॉ. श्रीनिवासन को सूचना दी और उन्होंने उस बूढ़े आदमी को जो इस बारे में सुनते ही अजीब बर्ताव करने लगा। इधर द्वीप में जैसे ही दुसरे आदमी ने पुस्तक के बारे में सुना, वह परेशान हो गया और कहा कि पुस्तक को अपने कब्जे में लेने के लिए जो करना पड़े वो करो और जल्दी वापस आओ।

इधर ओम ने कहना जारी रखा। वह बता रहा है कि उस पहाड़ी पर कुछ लोग पहले से मौजूद थे। उन्होंने मुझे पकड़कर बंधक बना लिया। वे मुझसे पुस्तक के बारे में जानना चाहते थे पर मैंने पुस्तक को पहले ही छिपा दिया था। एक वर्ष में मेरे बाल बढ़ गए थे। नाखून नहीं कटे थे। कपड़े भी नहीं बदले थे। उन्होंने मुझे पागल समझा। वे जान गए थे कि या तो इसे मार दिया जाए या छोड़ दिया जाए। इसलिए एक दिन मुझे नहलाकर, दाढ़ी बनाकर, नए वस्त्र पहनाकर राजा के सामने प्रस्तुत कर दिया। राजा ने मुझे मुक्त कर दिया। उस दिन मैंने पहली बार खुद को दर्पण में देखा और पहचाना। धीरे-धीरे मैं संसार के तौर – तरीके सीखने लगा परन्तु कहीं भी रहते हुए मेरे साथ सबसे बड़ी समस्या यह होती कि मेरे आसपास के सभी लोगों की आयु बढ़ती जाती परन्तु मैं वैसा का वैसा ही रहता।

इधर वीरभद्र पुस्तक को हाथ में लेकर सोच ही रहा था कि यह पुस्तक इतनी महत्वपूर्ण क्यों है, तभी उसे गोलियां चलने की आवाज़ सुनाई दी। पीछे मुड़कर देखा तो उसके कुछ आदमी मर चुके थे। बाकी को उसने गोली चलाने वाले को पकड़ने का आदेश दिया पर गोली चलाने वाला भी युद्ध की प्राचीनतम कला का प्रयोग कर रहा था। उसने उन्हें भी मार दिया पर इतने में वीरभद्र पुस्तक को लेकर निकलने में कामयाब हो गया। द्वीप के जंगल में उसे अपने साथी का फोन आया और उसने बताया कि वीरभद्र पुस्तक लेकर निकल गया है। आधे घंटे से भी कम समय में वे पहुंच जाएंगे।

इधर वीरभद्र डॉ. श्रीनिवासन को फोन करके परिस्थिति से अवगत कराता है जिससे वे भी बुरी तरह डर जाते हैं और उस बूढ़े आदमी के पास जाकर गुस्से में पूछते हैं कि आपने हमें कहाँ फँसाया है? अगर आप जवाब नहीं देंगे तो मैं सारे काम रोक दूँगा। यह सुनकर वह बूढ़ा आदमी अचानक खड़ा हो जाता है और डॉ. श्रीनिवासन की बाँह पकड़कर आठ फीट पीछे धकेल देता है और उन्हें धमकी देता है कि या तो यहाँ मौजूद सभी लोग अपना काम करके शांति से घर वापस जाएंगे या तो तुम अपने सवालों के जवाब ले लो। तब डॉ. श्रीनिवासन दुखी होकर बाहर चले जाते हैं।

दूसरी तरफ ओम बता रहा है कि जब उसके विषय में चारों तरफ बातें फैलने लगती थीं, तब वह जगह छोड़ दिया करता था और पूरे साम्राज्य से बाहर चला जाया करता था। उसने अनेक विषम परिस्थितियों का सामना किया पर कभी मरा नहीं।

गुप्त परिवर्तन

द्वीप के जंगल के आदमी ने अपने साथी के लिए वॉइस मैसेज छोड़ा और खुद सुविधा केंद्र में आधुनिक शस्त्रों के साथ दाखिल हो गया। सुरक्षाकर्मियों को मारते हुए वह ओम के बंधक बनाए कमरे की ओर बढ़ने लगा। उधर वीरभद्र भी रॉस द्वीप पर पहुँचा। हेलीकॉप्टर से उतरते ही उस पर गोलियों की बौछार होने लगी। किसी तरह वह अपनी जीप तक पहुंच गया और सुविधाकेंद्र की ओर भागा।

इधर ओम अभी भी बोल रहा था। वह बता रहा था कि कई लोग उसे भगवान की तरह पूजते थे पर समस्या तब खड़ी हो गई जब कुछ युवक अज्ञात बीमारी से मर गए। तब मुझे एक शाप की तरह देखा जाने लगा जो खुद जिंदा रहने के लिए जवान लोगों की जिंदगियां खींच लेता है। तभी से मैं छुपता आ रहा हूँ। तभी डॉ. श्रीनिवासन अंदर आते हैं और ओम की तरफ बढ़ते हैं। बूढ़ा आदमी अपने कमरे से यह देखता है और पैनिक बटन दबा देता है।

ओम डॉ. श्रीनिवासन से तेलगु में बात करता है और पूछता है कि क्या हुआ? वे कहते हैं कि उन्हें अपने सवालों के जवाब चाहिए। ओम अपनी आँखें बंद कर लेता है और स्क्रीन पर एक रोता हुआ बच्चा, जिसे दूसरे बच्चे परेशान कर रहे थे और शिक्षक के रूप में ओम दिखाई देता है। अब ओम उनसे पूछता है कि क्या तुम्हें याद है? तब वे बच्चे की तरह रोने लगते हैं और ओम को आदर और दया के साथ देखने लगते हैं। बाकी लोगों को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है!

तभी एल.एस. डी. के कम्प्यूटर से बीप की आवाज आती है। वह स्क्रीन की तरफ देखती है जिसमें बूढ़े आदमी का चेहरा दिखाई देता है और स्क्रीन तुरंत काली हो जाती है। उसकी डिजिटल घड़ी 8:45 का समय दिखाती है। यही संकेत परिमल के साथ भी होते हैं। परिमल अभिलाष के बेंच की तरफ जाता है और उसके कंधे पर हाथ रखता है। पल भर में ही एल.एस.डी. और परिमल का व्यक्तित्व बदल जाता है।

उधर वीरभद्र खून से लथपथ सुविधा केंद्र में आता है और डॉ. श्रीनिवासन को फोन करता है। इधर डॉ. श्रीनिवासन ओम से पूछते हैं कि पुस्तक में क्या है? इस बात से अनजान कि उसके साथ-साथ उसकी पुस्तकें भी इसी द्वीप पर आ चुकी हैं, ओम बताता है कि वे पुस्तकें अमरता को पाने की चाबी हैं। उसमें मेरे जैसे और मनुष्य बनाने की प्रक्रिया का वर्णन है। तभी डॉ. श्रीनिवासन का फोन बजता है। वे फोन उठाते हैं और उसमें वीरभद्र  पुस्तक को ले आने की बात बताता है जिसे ओम सुन लेता है। ओम को सदमा-सा लगता है। डॉ. श्रीनिवासन ओम की ओर क्षमा-याचना भरी दृष्टि से देखते हैं और कहते हैं कि मुझे नहीं पता था कि मैं गलत लोगों का साथ दे रहा हूँ। अब मैं अपनी गलती को सुधारूँगा। वे ओम को बताते हैं कि वे नागेंद्र के लिए काम कर रहे थे। यह नाम सुनते ही ओम बहुत परेशान हो जाता है।

डॉ. श्रीनिवासन पुस्तक लेने वीरभद्र के पास जाते हैं। परिमल भी बाहर आ जाता है। वह रसोई से होते हुए एक खुफिया कमरे में जाता है, जहाँ आधुनिक शस्त्र, बुलेटप्रूफ जैकेट आदि रखे थे। इधर एल.एस.डी. भी प्रसाधन कक्ष में जाकर हथियारों से लैस होकर बाहर आती है। डॉ. बत्रा और शाहिस्ता यह सब देखकर दंग रह गए थे। वीरभद्र का पीछा करने वाला आदमी भी सुविधा केंद्र में आ चुका था और अब दोनों साथी मिलकर अनेकों सुरक्षाकर्मियों को मार चुके थे। ओम के साथ डॉ. बत्रा और शाहिस्ता भी गोलियों की आवाज सुनते हैं। ओम उनसे खुद को खोलने की प्रार्थना करता है। डॉ. बत्रा अभिलाष को सोया देखकर उसे जगाने की कोशिश करते हैं पर वह मर चुका है।

इधर डॉ. श्रीनिवासन वीरभद्र से पुस्तक लेकर वापस पूछताछ कक्ष में आते हैं। एल.एस.डी. डॉ. श्रीनिवासन को  गोली मारकर पुस्तक को ले लेती है जिसे कैमरे के सहयोग से बूढ़ा आदमी देखकर खुश हो जाता है। फिर एल.एस.डी. कमरा अंदर से बंद कर देती है। उधर मुखौटा वाला व्यक्ति अपना मुखौटा उतारकर आगे बढ़ रहा है। उसके बाल लंबे और शरीर सुगठित है। उसने अपने हाथों में सोने के कड़े पहने हुए हैं। पूछताछ कक्ष तक पहुंचकर वह दरवाजे को जोर से लात मारता है।

इधर परिमल गोला-बारूद लेकर नागेंद्र के पास पहुंचता है। नागेंद्र उसे प्यार से सहलाता है और स्क्रिन में पूछताछ कक्ष को लात मारते हुए आदमी को दिखाता है जिसे देखकर परिमल खड़ा होकर ओम और एल.एस.डी. के पास जाने लगता है।

अमर योद्धा

दूसरे साथी ने सभी सुरक्षाकर्मियों को मार दिया था केवल वीरभद्र और उसके दो आदमी बचे थे। इधर शाहिस्ता फिर से ओम को खोलने का प्रयास कर रही थी। नागेंद्र, एल.एस.डी. को दोनों को मारकर ओम को जीवित लाने को कहता है। तब वह दोनों पर एक साथ दोनों हाथों से गोली चला देती है। डॉ. बत्रा तेजी से हट जाते हैं और ओम शाहिस्ता को हटाकर खुद सामने आ जाता है जिससे गोली ओम की छाती में लग जाती है। ओम दर्द से छटपटाने लगता है। एल.एस.डी. अपनी गलती समझकर दुबारा शाहिस्ता के सिर में गोली मार देती है। वह घायल ओम को कॉलर से पकड़कर खींचते हुए दीवार की ओर ले जाती है। तभी पूछताछ कमरे का दरवाजा टूट जाता है और जो व्यक्ति अंदर आते हैं उन्हें देखकर सभी दंग रह जाते हैं। वे हैं परशुराम!

उनका दूसरा साथी अब वीरभद्र के सामने पहुंच चुका है। वह भी उन्हें पहचान जाता है । उसने उन्हें ओम की यादों में अश्वत्थामा और सुभाष चन्द्र बोस के रूप में देखा था। इधर परशुराम ओम को बचाने के लिए धनुष उठाते हैं तभी पीछे से ईंट की दीवार गिरती है और परिमल उनके सामने आ जाता है। दोनों एक-दूसरे पर गोली चलाते हैं पर बच जाते हैं। इसी बीच एल.एस.डी. ओम को गुप्त दरवाजे से निकालने में सफल हो जाती है और परिमल भी भागकर उनके साथ चला जाता है और दरवाजा बंद हो जाता है। डॉ. बत्रा मेज के पीछे छिपे रहकर यह सब देख रहे थे। रसोई को पार करते समय उन्हें वीरभद्र मिलता है जिसे एल.एस.डी. यह कहकर विश्वास में ले लेती है कि ओम पर एक आदमी ने हमला किया था और वे उसे बचाकर नागेंद्र सर के पास ले जा रहे हैं। यह सुनकर वह भी उनके साथ जाने लगा। नागेंद्र स्क्रीन पर यह सब देख रहा था। उसने अपने कमरे से सीधे समुद्र के किनारे निकलने वाले गुप्त रास्ते का दरवाजा खोला। उसने एक बस्ते में पुस्तकें, दवाइयां और अन्य जरूरी सामान ले लिया।

अब ओम को वीरभद्र ने पकड़ रखा है इस वजह से परिमल और एल.एस.डी. नागेंद्र के कक्ष तक पहुंच जाते हैं पर वीरभद्र पिछड़ जाता है। अश्वत्थामा उनसे ज्यादा दूर नहीं था। वीरभद्र ओम और टीम के बाकी सदस्यों को बचाने के लिए सैनिक की तरह लड़ा पर अंत में अश्वत्थामा के हाथों मारा जाता है। इधर डॉ. बत्रा सबूत और जमीन पर फैले ओम के खून का सैंपल, एल.एस.डी. का लैपटॉप, ओम की फाइल लेकर इमारत से चुपचाप निकल जाते हैं।  उधर अश्वत्थामा ओम को बचा लेते हैं पर परिमल और एल.एस.डी. नागेंद्र के साथ गुप्त मार्ग से भाग जाते हैं। अश्वत्थामा ओम को लेकर रसोई में और परशुराम नागेंद्र के पीछे जाते हैं परन्तु तब तक वे लोग भाग चुके थे।

अश्वत्थामा ओम को बताते हैं कि वे हमेशा ओम पर नजर रखे हुए थे। पुस्तकें अब नागेंद्र के कब्जे में हैं। अब परशुराम वापस आते हैं और वे तीनों सुविधाकेंद्र से बाहर आते हैं। तभी वह इमारत ध्वस्त हो जाती है। अश्वत्थामा परशुराम से पूछते हैं कि हमारा अगला कदम क्या होगा? परशुराम कहते हैं कि अब हमारा काम ओम की सुरक्षा करना है। अब समय है कि वह अपने छुपे हुए अस्तित्व को जाने। अगली बार वह ही हमें बचाएगा। अश्वत्थामा पूछते हैं कि अब हम उन्हें कैसे ढूँढेंगे? तब परशुराम बताते हैं कि हम उन्हें नहीं बल्कि वे हमें खोजेंगे क्योंकि अमरत्व के ताले की अंतिम चाबी हमारे पास है।

उधर पनडुब्बी में नागेंद्र पुस्तक पढ़ रहा था और इधर शाम होते तक दोनों चिरंजीवी मृत्युंजय के साथ समुद्र तट पर पहुंच गए थे।

इतना बताने के बाद जैसे ही पृथ्वी पानी पीने के लिए रुका, मिसेज बत्रा बोलीं, ” तुम्हें ये सब कैसे पता ? तुम ओम शास्त्री को क्यों ढूंढ रहे हो ? तब वह बताता है कि “क्योंकि वे मेरे पिता हैं।”

                           आगे जारी……

चुनिंदा पंक्तियाँ :

# जैसे ही मैं तैयार हुआ और दर्पण में खुद को देखा, मैंने जीवन में पहली बार मृत्युंजय को पहचाना। लेकिन मेरी प्रसन्नता गायब हो गई, जैसे ही मुझे यह एहसास हुआ कि मैं एक पूर्ण वयस्क आदमी हूँ, जो किसी काम का नहीं है। मैं अंदर से खोखला था- बिना प्रेम के, घृणा के, शान्ति के, हलचल के, कोलाहल के; बस, केवल सन्नाटा! मेरे होने या न होने से किसी को कोई फर्क नहीं।

# समय प्रत्येक जिंदगी के हर एक क्षण का हिसाब रखता है, इसलिए तुम्हारी हर दिन आयु बढ़ती है। पुस्तकों में सर्वशक्तिमान समय की दृष्टि से तुम्हें छिपाने की क्षमता है। कल्पना करो, समय के लिए तुम्हारा अस्तित्व नहीं है। तुम्हारे लिए मृत्यु एक भ्रम है।

# यह वह आदमी था, जिसे ओम हजारों वर्षों से खोजने की कोशिश कर रहा था। वह अतीत का प्रतीक था, जो वर्तमान के सामने सीधा खड़ा समय को चुनौती देने के लिए पूर्ण रूप से तैयार था। वह थे परशुराम!

अगर आपने भाग 1, 2 और 3 नहीं पढ़ा है तो आप उसे इस लिंक में क्लिक करके पढ़ सकते हैं👇

अक्षत गुप्ता : द हिडन हिंदू (हिंदी अनुवाद)(भाग 1) | DREAMING WHEELS

अक्षत गुप्ता : द हिडन हिंदू (हिंदी अनुवाद)(भाग 2)|DREAMING WHEELS

अक्षत गुप्ता : द हिडन हिंदू (हिंदी अनुवाद)(भाग 3)| DREAMING WHEELS

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