चेखव:संवेदनाओं का चर्चित चितेरा (भाग 3)
चेखव की जिन दो कहानियों का ज़िक्र अब मैं करने जा रही हूँ ये दोनों प्रेम के दो अलग-अलग अनुभव हैं। जहां पहली कहानी में प्रेम से कहे गए दो शब्दों से पूरी जिंदगी महकती रहती है वहीं दूसरी कहानी में आकर्षण रूपी प्रेम बंधन के खयाल से ही रफ़ूचक्कर हो जाता है।
4: मामूली मज़ाक
जबरदस्त ठंड के मौसम में एक खुशनुमा दोपहर। पूरा पहाड़ बर्फ़ से ढका हुआ। नादेन्का और लेखक एक पहाड़ की चोटी पर एक साथ खड़े थे। उनके बाल और चेहरे पर भी बर्फ़ जम गई थी। उनके पाँव के नीचे से फिसलती हुई -सी एक चौड़ी पट्टी गहरी खाई में उतरती चली गई थी। उनके बगल में लाल कपड़े से ढकी हुई बर्फ़ गाड़ी थी।
लेखक ने नादेन्का से कहा कि’हमें नीचे फिसलना चाहिये, नादेन्का’, वह उससे वादा करता है कि उसे कुछ नहीं होगा।
पर नादेन्का बहुत ही ज्यादा डरी हुई थी और नीचे जाने को तैयार नहीं थी। उसे बर्फ़ीली ढलान भयानक खाई की तरह लग रही थी। लेख़क के बहुत समझाने पर आखिर में वह मान गई। फिर वे दोनों स्लेज गाड़ी में बैठ गए और वे तेज़ी से नीचे उतरने लगे।
ढलान पर भागते पहिये तेज़ आवाज कर रहे थे। ठंडी हवा उनके चेहरों से टकरा रही थी। उनकी आँखों के आगे सबकुछ धुँधला हो गया था और ऐसा लग रहा था जैसे अगले ही पल में सब ख़त्म। तभी लेखक ने बेहद धीमे स्वर में कहा “‘ मैं तुमको प्यार करता हूँ, नादेन्का!’
बर्फ़गाड़ी की गति अब धीमी हो रही थी। कुछ पलों के बाद वे नीचे पहुंच गए। नादेन्का मुश्किल से सांस ले पा रही थी। वह कहती है कि अब कभी वह इसतरह नीचे नहीं उतरेगी। फिर थोड़ी देर बाद सामान्य हो जाने पर उसे संदेह होने लगता है कि उसने हवा में वह स्वर कैसे सुन लिया जबकि लेखक लापरवाही से उसकी बगल में खड़ा था। फिर वे दोनों बड़ी देर तक पहाड़ी के नीचे घूमते रहे पर लेखक ने ऐसा जताया जैसे उसे कुछ पता ही नहीं और नादेन्का उलझी हुई क्योंकि वे पाँच शब्द उसकी पूरी जिंदगी बदल सकते थे। वह उन शब्दों को लेखक के मुंह से सुनना चाहती थी पर लेखक के कुछ ना कहने पर वह फिसलने का खेल दुबारा खेलने को कहती है।
वे दोनों फिर पहाड़ी पर चढ़ जाते हैं।इस बार भी नादेन्का डरी हुई है। वे फिर फिसलने लगते हैं। सबसे शोर वाले समय में लेखक फिर वही कहता है ‘नादेन्का, मैं तुमको प्यार करता हूँ।’
नीचे आने पर वही पहले जैसा संशय। वे शब्द उसने कहे हैं या नादेन्का की कल्पना। तीसरी बार भी वे ये खेल खेलते हैं और फिर से लेखक वही शब्द दोहराता है यहाँ तक कि घर लौटते हुए भी। नादेन्का वे शब्द उससे ऊंची आवाज में सुनना चाहती है। उसकी वेदना तीव्र होने लगती है पर लेखक क़ुछ नहीं कहता।
अब वे दोनों रोज ये खेल खेलते हैं और शोर भरे लम्हे में वे शब्द कहे जाते हैं पर सामने से इक़रार नहीं किया जाता।अब नादेन्का को उन शब्दों का नशा सा हो गया। एक दोपहर लेखक अकेले ही ढलान पर चले गए तो उसने देखा कि नादेन्का अकेले ही पहाड़ी पर चढ़ गई और अकेले ही फिसलकर आई। नीचे आने पर वह बहुत कमज़ोर लग रही थी। उसे देखकर बताना मुश्किल था कि उसने वे शब्द सुने या नहीं।
फिर बसन्त का मौसम आ गया और बर्फीली ढलान गुम हो गई और साथ ही फिसलने का खेल भी। अब लेखक दूर जाने वाला था हमेशा के लिए।
उसके जाने से एक-दो दिन पहले की शाम।लेखक और नादेन्का के घर के बीच केवल एक लोहे की जाली से बनी दीवार थी। लेखक अपने घर के सामने बगीचे में बैठा था तभी नादेन्का बाहर आई और आसमान की तरफ़ उदास नज़रों से देखने लगी जैसे वे शब्द सुनना चाहती हो। जैसे ही हवा की गति तेज़ हुई लेखक ने धीरे से वही शब्द दोहराए। उसे सुनते ही नादेन्का ख़ुशी से नाचने लगी।
बरसों बाद आज नादेन्का की शादी जो चुकी है। तीन बच्चे हैं पर वह अब भी नहीं भूली है उन शब्दों को और ये उसके जीवन की सबसे मूल्यवान स्मृति है और लेखक अब भी ये सोचता है कि आखिर उसने ऐसा मज़ाक क्यों किया था।
इस कहानी में प्रेम का सागर नहीं है, प्रेम में पागल प्रेमी और प्रेमिका नहीं हैं, है तो सिर्फ वे पाँच शब्द जो नादेन्का के जीवन की अमूल्य धरोहर की तरह है। चेखव ने अपने पात्र को आज़ाद छोड़ दिया है और उसके मन को ऐसे पढ़ रहे हैं जैसे अन्तर्यामी हों।
चुनिंदा पंक्तियाँ:
# नादेन्का मेरी बाँह में बाँह पिरोये हुए थी। उसकी कनपटियों के घुंघराले बालों पर बर्फ ने डेरा जमा लिया था। उसके माथे पर चांदी की परत चढ़ी हुई थी। उसके हसीन होंठो पर अनायास उग आए हल्के रोएं भी बर्फ़ के रंग के हो गए थे।
# क्या हो जायेगा, अगर वह बर्फ़गाड़ी पर सवार होकर खाई में उतरने का खतरा मोल लेती है। वह पागल हो जायेगी या मर ही जाएगी।
# हवा किसी भयानक दानव की तरह हमारे चेहरे को ऐसे नोच-खसोट रही थी और गर्दन पर तलवार के अतिमानवीय वार का आक्रमण कर रही थी जैसे हमारी गर्दनें उड़ा कर ही दम लेगी।
# उसकी सुंदर देहयष्टि को ढकने वाली हर वस्तुएं उसका मफलर, उसकी टोपी, उसकी समूची देह का शिरा-शिरा बस एक ही सवाल पूछ रहे थे, ‘यह सब क्या है? किसने वो शब्द कहे हैं ? इसी ने कहे हैं या मैंने कल्पना कर ली है।’
# पात्र अर्थहीन है, अगर उसमें से भरे गए घूंट नशे में डुबो देते हैं।
# हमारी बर्फ़ीली ढलान अंधेरे में डूबी,अपनी चमक से महरूम हुई और अंततः पिघलकर अस्तित्वहीन हो गई।
5: प्लान
इल्या सेर्गेइच पेप्लोव और उसकी पत्नी क्लियोपेत्रा की बेटी नताशा और म्यूनिसपल स्कूल के टीचर श्चुप्किन एक दूसरे के करीब आने लगे थे। ये बात नताशा के माता-पिता जानते थे और वे चाहते थे कि दोनों की बात पक्की हो जाए।
एक दिन जब श्चुप्किन और नताशा ड्राइंग रूम में बातें कर रहे थे तो दरवाजे के पीछे खड़े नताशा के माता-पिता ने प्लान बनाया कि जैसे ही श्चुप्किन प्रेम का इजहार करेगा वे सन्यासिनी मौसी की मूर्ति लेकर उन्हें आशीर्वाद दे देंगे क्योंकि उस मूर्ति को इतना शक्तिशाली माना जाता है कि कोई इसे चुनौती नहीं दे सकता।
इधर ड्राइंग रूम में बातचीत का सिलसिला इजहार तक पहुँचने ही वाला था कि वे दोंनो मूर्ति लेकर अंदर पहुँच जाते हैं और दोनों को ढेर सारे आशीर्वाद देने लगते हैं और श्चुप्किन इस अचानक हमले से घबरा जाता है पर ये क्या क्लियोपेत्रा गलती से सन्यासिनी की मूर्ति के बदले लेखक लाझेचनिकोव की तस्वीर उठा लाती है जिसपर नज़र पड़ते ही पेप्लोव चिल्लाने लगता है और मौक़ा पाकर शिक्षक वहाँ से गुम हो जाता है और जीवन भर उस लेखक को धन्यवाद देता है।
यह कहानी पूरी पढ़ने के बाद ऐसा लगता है जैसे आप थियेटर में बैठे थे और ये पूरा नाटक अभी-अभी आपके सामने ही हुआ हो।
चुनिंदा पंक्तियाँ:
# हम उन्हें रंगे हाथों पकड़ चुके होंगे और उस मूर्ति को क्या समझ रही हो ? मूर्ति की छत्रछाया में आशीष इतना पवित्र हो जाता है कि वह उसे कोर्ट में भी चुनौती नहीं दे सकता। मूर्ति उसकी मुक्ति को इतना असम्भव कर देगी।
# असली बात तो बच्चों को सिखाना है कि वे अपने प्रति सचेत रहें। किसी को सिर पर रुलर से ठोका तो किसी को घुटनों पर हुलकेरा…….
# भय से जड़वत हो जाने के चलते उसकी आंखें बाहर निकलने को हो आईं। आश्चर्य उसके रोमकूपों तक से बहने लगा।
चेखव की कहानियों में जीवन के सारे रंग दिखाई देते हैं। सभी कहानियों ने मन को छू लिया खासकर ‘दुख’ और ‘मामूली मज़ाक’ ने।
चेखव के शब्दों का संयोजन बेजोड़ है। मानव जीवन पर ऐसा मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण बहुत कम लोगों के पास होता है।
नाम: अंतोन पावलोविच चेखव
जन्म: 29 जनवरी, 1860
जन्म स्थान: दक्षिणी रूस
मृत्यु: 15 जुलाई, 1904
कृतियां: प्लेतोनोव, ऑन द हार्मफुल इफैक्ट ऑफ टोबेको, इवानोव द बीयर, अ मैरिज प्रपोज़ल, अंकल वान्या (नाटक), द ड्युअल, माय लाइफ, द स्टोरी ऑफ एन अननोन मैन (उपन्यास), द बेट, द ब्लैक मोंक, द डार्लिंग, द लेडी विद द डॉग (कहानियां)
Note: इन कहानियों का अनुवाद डॉ. देव ने किया है जो हिंदी के सजग रचनाकार और अनुवादक हैं।