भीष्म साहनी : हानूश (भाग 5) | हानूश नाटक

भीष्म साहनी हानूश (भाग 5) DREAMING WHEELS (2)

भीष्म साहनी : हानूश (भाग 5) DREAMING WHEELS

दो साल पूरे हो चुके हैं। लोगों को हानूश की घड़ी और उसके अंधेपन की आदत पड़ चुकी है। हानूश का दिमाग अवसाद और मन कटुता से भर चुका है। वह रहता तो अपने पुराने घर में ही है पर अब वह बहुत आरामदेह और सुसज्जित है।

कात्या घर के काम में व्यस्त है। तभी एमिल आता है। वह हानूश के बारे में पूछता है। कात्या कहती है कि वह आता ही होगा। एमिल कहता है कि अच्छा है वह घर पर नहीं है। मैं एक अच्छी खबर लाया हूँ। तुला से एक सौदागर आया है। वह चाहता है कि हानूश उसकी नगर पालिका के लिए घड़ी बनाए। यह सुनकर कात्या नाराज़ हो जाती है और कहती है कि अभी तो हानूश केवल आँखों से अंधा है इसके बाद तो वह जान से भी हाथ धो बैठेगा। तुम क्यों उसके पीछे पड़े रहते हो? तब एमिल उसे समझाता है कि जो लोग कोई नया काम करते हैं उन्हें कई तरह के जोखिम उठाने पड़ते हैं। हानूश को अंधा बादशाह ने सौदागरों और गिरजे वालों के बीच अपनी ताकत को बनाए रखने के लिए किया। 

एमिल कात्या से कहता है कि हानूश के लिए इस शहर में रहना नरक भोगने के समान है। तीन बार किसी ना किसी बहाने से वह घड़ी को तोड़ने की कोशिश कर चुका है। उसे ऐसी जगह ले जाना चाहिए जहाँ वह घड़ी की आवाज़ ही ना सुन पाए। अगर बाहर जाकर वह फिर से घड़ी बनाने के काम में लग जाए तो उसका दुख दूर हो जाएगा। इसके लिए जरूरी है कि तुम सभी यहाँ से बाहर चले जाओ। तुला का सौदागर सारे इंतजाम कर देगा।

कात्या कहती है कि अगर बादशाह को पता चल गया तो क्या होगा? ये उनके हुक्म की खिलाफत नहीं होगी? एमिल कहता है कि बादशाह ने कौन सा उसका भला किया है जो वह उनके हुक्म को मानता रहे। यह हानूश की जिंदगी का सवाल है। हम उसे तिल-तिलकर मरता नहीं देख सकते। जेकब उसके साथ होगा। वह घड़ी का सारा काम जानता है। वे दोनों मिलकर नई घड़ी बना लेंगे। पर कात्या राजी नहीं होती। उसे लगता है कि जैसा भी है यह उनका अपना वतन है। यहाँ सुख-दुख में साथ देने वाले लोग हैं। साथ ही हानूश राजदरबारी है। कम से कम अच्छा खाता- पहनता तो है। तुम्हें क्यों लगता है कि वह और घड़ियां बनाना चाहता है? बल्कि वह तो कहता है कि मरने से पहले इस घड़ी को तोड़कर मरूँगा।

एमिल कहता है कि तुम जानती हो वो ऐसा क्यों कहता है। वह अंदर से बहुत दुखी है। पहले  दिन-रात घड़ियां बनाता था, अब एकदम खाली है। तभी गली से आवाज़ आती है। एक आदमी उन्हें बताता है कि हानूश बादशाह के सवारी के आगे घोड़ों के सामने गिर गया। जेकब भागता हुआ आता है और बताता है कि हम लोग चौक में थे। मैं चाचा के एक तरफ और दूसरी तरफ यान्का थी। बादशाह की सवारी नजदीक आने पर वह हाथ छुड़ा कर भागे और सड़क के बीचों-बीच चले गए और घोड़ों से टकरा गए।

यह सब सुनकर कात्या घबरा जाती है। वह जानती है कि हानूश ने ऐसा जानबूझकर किया है। वह एमिल से कहती है कि वह हानूश को लेकर यहाँ से चली जाएगी। हानूश घर आ गया है। वह कात्या को झूठी सफाई देने की कोशिश कर रहा है। मुझे क्या मालूम था कि बादशाह की सवारी अचानक इधर से आ जाएगी। इसमें मेरा कोई दोष नहीं है। तुम नाराज़ मत हो। कात्या कहती है कि तुम गाड़ी के सामने जानबूझकर कूदे थे। इस पर हानूश कहता है कि नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। तुम यों ही तरह-तरह के कयास लगाती रहती हो। पाता है कात्या कभी-कभी मुझे लगता है जैसे मैं सब-कुछ देख रहा हूँ और मेरे हाथ फिर से घड़ी बनाने में लगे हुए हैं। हर बार घड़ी बजने पर लगता है जैसे हानूश ना तो अंधा हुआ है और ना ही मरा है…..कात्या कहती है कि तुम एक दिन जरूर घड़ी बनाओगे।

इधर एमिल जेकब को यहूदी सराय में रुके सौदागर के पास जाने को कहता है। वह उससे कहता है कि वह सौदागर तुम्हें सबकुछ समझा देगा। हो सकता है तुम्हें जल्दी ही यह शहर छोड़ कर जाना पड़े। जेकब चला जाता है। एमिल कात्या से कहता है कि तुमने सुना कात्या, हानूश के अंदर आज भी घड़ी बनाने की ख्वाहिश बाकी है। हम उसे इस हालत में नही छोड़ सकते। हमें उसकी बैचेनी दूर करनी ही होगी। तभी हानूश वहाँ आता है और कहता है कि क्या तुम लोगों ने घड़ी को बजते सुना? इस वक्त तक उसे बज जाना चाहिए था, पर वह नहीं बजी। यान्का भी कहती है कि उसने भी घड़ी के बजने की आवाज नहीं सुनी। इस पर कात्या कहती है कि हानूश को एक-एक पल का अंदाज रहता है। उसके कान घड़ी की ओर ही लगे रहते हैं। शायद वह सचमुच नहीं बजी है। हानूश जेकब को पुकारता है और कहता है कि मैंने पहले ही कहा था मीनार में सीलन है। पुर्जों को जंग लग गया होगा। चलो अच्छा हुआ। बहुत अच्छा हुआ।

 

गली में शोर हो रहा है। लोग घड़ी के बंद होने की बातें कर रहे हैं। तभी वहां सरकारी अधिकारी आता है। वह कहता है कि घड़ी बन्द हो गई है। इसी सिलसिले में वजीर ने हानूश को तलब किया है। हानूश कहता है कि मुझे अफसोस है पर अंधी आँखों से मैं इसे कैसे ठीक कर सकता हूँ? अधिकारी कहता है कि आपको हमारे साथ चलना होगा। वरना बादशाह नाराज़ हो जाएंगे। हानूश चलने को राजी हो जाता है। अधिकारी हानूश को लेकर चले जाते हैं। कात्या एमिल से कहती है कि मुझे लगता है कि वह घड़ी को तोड़ने जा रहा है। पर एमिल उसे समझाता है कि वह दो कदम तो अपने आप चल नहीं पाता घड़ी क्या तोड़ेगा? कात्या उसके पास जेकब को भेजने को कहती है तब एमिल कहता है कि जेकब तो अब तक शहर छोड़ चुका होगा। उसे मैं कहाँ ढूँढूँ? 

अधिकारी हानूश को घड़ी की मीनार में ले आए हैं। उसे घड़ी के ठीक सामने खड़ा कर दिया है और उसे घड़ी की मरम्मत करने के लिए कह रहे हैं। हानूश उनसे कहता है कि मैं आँखों के बिना घड़ी को कैसे ठीक कर सकता हूँ? तब वे कहते हैं कि घड़ी तो तुम्हें ही ठीक करनी होगी। वे उससे बार-बार जेकब के बारे में भी पूछते हैं।  वह बताता है कि सुबह वह मेरे साथ ही था। बाद में बाहर चला गया। अधिकारी कहते हैं कि तुम अपनी मदद के लिए जिसे चाहे बुला सकते हो। हम ले आएंगे। हानूश उन्हें दाएँ कोने में रखा औज़ारों का बक्सा देने कहता है और किसी आदमी को मदद के लिए बुलाने को भी कहता है। अधिकारी चले जाते हैं।

हानूश मीनार में अकेला है। उसने हाथों से टटोलकर बक्से से एक बड़ी हथौड़ी निकाली है और घड़ी की ओर अंदाजे से दो कदम बढ़ा दिए हैं। वह सोचता है कि हथौड़े के वार से कुछ तो टूटेगा ही। अगर वार लीवर पर लगे तो यह फिर कभी नहीं बन पाएगी।  लीवर को खोजता उसका हाथ घड़ी पर पड़ जाता है। घड़ी को छूते ही उसके शरीर में बिजली सी दौड़ने लगती है। उसे सहलाने और पहचानने लगता है। उसे एहसास होने लगता है कि यह तो मेरी घड़ी है। टटोलते हुए उसे लगता है कि लीवर टूट गया है। उसके अंदर बहुत से मिले-जुले खयाल घूमने लगते हैं। कभी वह सोचता है कि लीवर को ही तोड़ देता हूँ, इससे घड़ी हमेशा के लिए मर जाएगी। कभी सोचता है कि लीवर को अपने पास रख लूँ निशानी के तौर पर और कभी सोचता है कि मुझे इन सब से क्या लेना-देना?

तभी एक आदमी वहाँ उसकी मदद के लिए आता है। वह कहता है वाह, यह तो बहुत बड़ी मशीन है। हानूश भाई मुझे तुम्हारी मदद के लिए भेजा गया है। तुम्हारे साथ बहुत जुल्म हुआ। हमें बहुत दुख हुआ। घड़ी बन्द हो गई क्या? तुम्हारी आँखें होती तो तुम इसे झट से ठीक कर लेते। हमसे जी कहो हम करने को हाजिर हैं। तुम जानते हो हमने तुम्हारे हाथों में कितनी ही बार फूलों के गुच्छे दिए हैं। आज तुमसे मुलाकात हो गई। तुम चुप क्यों हो?…… तुम दुखी हो ना। तुम्हें घड़ी पर गुस्सा भी आता होगा ना।

हानूश उससे पूछता है कि तुम कौन हो? आदमी बताता है कि वह भी एक लोहार है। वह हानूश से कहता है कि तुम तो इन पुर्जों को हाथ लगाते ही समझ जाओगे। इसे तुमने ही तो जन्म दिया है। हानूश इधर-उधर चलते हुए कलपुर्जों को हाथ लगाता है। किसी पुर्ज़े को पकड़कर हिलाता है तब घड़ी की टिक-टिक सुनाई देने लगती है और छोड़ देने पर टिक-टिक बन्द हो जाती है।

हानूश उस आदमी से नीचे की ओर देखने को कहता है कि कहीं घड़ी का कोई हिस्सा गिरा तो नहीं है? वह आदमी उस पुर्ज़े को उठाकर हानूश के हाथ में देता है। हानूश समझ जाता है कि लीवर के टूटने से पेंडुलम नीचे गिर गया था। छड़ को जंग लग गई है। अब हानूश काम में खोता जा रहा है।

दिन चढ़ गया है। हानूश अभी तक मशीन पर काम कर रहा है। कात्या आई है। वह कात्या से कहता है कि नया लीवर डालना पड़ेगा। उसकी बात सुनकर कात्या की आँखों में आँसू आ जाते हैं। वह कहती है कि तुम पहले की तरह बातें करने लगे हो। हानूश उसे बताता है कि वह तो यहाँ घड़ी को तोड़ने के इरादे से आया था पर जैसे ही इसकी कमानी पर हाथ रखा लगा जैसे घड़ी के दिल पर हाथ पड़ गया हो। मुझसे इसे तोड़ा ही नहीं गया। यहाँ एक भोला सा आदमी भी मेरी मदद के लिए लाया गया था। वह मुझसे कह रहा था कि मैं अपनी ही बनाई चीज से कैसे रूठ सकता हूँ। कात्या मुझे लगता है जैसे मैं घड़ी के एक-एक पुर्ज़े को देख सकता हूँ। …….यान्का कैसी है? जेकब लौटा या नहीं? वह घड़ी का सब काम जानता है । अच्छा ही हुआ वह शहर से निकल गया।

कात्या उसे खाना खिलाकर चली गई है। हानूश अभी भी मीनार में घड़ी पर काम कर रहा है। बूढ़ा लोहार नई कमानी बना कर लाया है। हानूश उनसे कहता है कि घड़ी बनाने में कुछ गलतियां हुई थीं वरना घड़ी इतनी जल्दी खराब नहीं होती। तुम एक बार बड़े हिसाबदान को मेरे पास ले आओ। मैं कुछ सलाह करना चाहता हूँ। बूढ़ा लोहार बताता है कि वह नहीं आएंगे। जब से तुम्हारी आँखें निकाल दी गईं कोई भी घड़ी के पास नहीं आना चाहता। हानूश उनसे कहता है तो आप कैसे? बूढ़ा लोहार कहता है कि वह न तो घड़ी से दूर रह सकता है और न ही हानूश से।

सवेरा हो रहा है। कात्या और यान्का भागते हुए अंदर आते हैं। अब घड़ी की टिक-टिक साफ सुनाई दे रही है। हानूश के चेहरे पर संतोष साफ दिखाई दे रहा है। पुलिस के अधिकारी सीढ़ियों के पास खड़े हैं। हानूश आहट  सुनता है और कहता है कि कौन हो भाई? घड़ी अब ठीक है। आखिर मशीन ही तो है। अधिकारी उससे जेकब के बारे में पूछता है और कहता है कि तुम्हें जेकब के बारे में जरूर मालूम होगा। कहाँ है वह? हानूश कहता है कि मुझे नहीं मालूम कि वह कहाँ है। पर अगर वो यहाँ होता तो मुझे बड़ी मदद मिलती, पर कोई बात नहीं, मैंने घड़ी उसके बिना भी ठीक कर ली है।

अधिकारी उसे कहता है कि तुम्हारी साजिश पकड़ी गई है। तुम सरकार की मनाही के बावजूद दूसरी रियासत में घड़ी बनाने जा रहे थे। बादशाह ने तुम्हें तलब किया है। हानूश बड़े ही आश्वश्त भाव से कहता है कि महाराज का हुक्म सिर आँखों पर। कात्या तुम चिंता न करो। घड़ी अब चलने लगी है। अब कभी बन्द नहीं होगी। जेकब चला गया है यही सबसे बड़ी बात है। मैं तैयार हूँ। जहाँ चाहे, ले चलो। सिपाही हानूश को ले जाने लगते हैं। घड़ी बजने लगती है। हानूश उसकी टन-टन सुनकर मुस्कुराते हुए सीढ़ियों की ओर चलने लगता है।

चुनिंदा पंक्तियाँ :

# नहीं, तुम गलत कहते हो। तुम कुछ नहीं जानते। क्या तुम समझते हो, घड़ी की आवाज़ सुने बिना वह जी सकता है? घड़ी को लेकर वह कुढ़ता है, मन-ही-मन छटपटाता है, उसे तोड़ने की कोशिश भी करता है पर उसकी जान घड़ी में ही है।

# अन्धे आदमी की दुनिया ही दूसरी होती है कात्या! न जाने वह किन परछाइयों के साथ जूझता रहता है! हमें फिर से उसे आँखें देनी होंगी।

# कात्या, कभी-कभी ऐसा जरूर होता है, मुझ पर जुनून-सा चढ़ जाता है। हर बार घड़ी बजती है तो मुझे लगता है, मेरे अंधेपन का मजाक उड़ा रही है। जब बजती है तो लगता है, सभी लोग हंसने लगे हैं – बादशाह अपने महल में, लाट पादरी अपने गिरजे में हँस रहा है।

# हाँ, अच्छा हुआ, बन्द हो गई। मेरी बला से। दो साल भी नहीं चली। कोई पुर्ज़ा टूट गया होगा। मगर कौन सा पुर्ज़ा? चलो , अच्छा हुआ, अपनी मौत मर गई। हम दोनों में होड़ चल रही थी कि पहले कौन दम तोड़ता है….. नीचे धुरे में जंग लग गया होगा। मीनार में सीलन थी। चलो, अच्छा हुआ, बहुत अच्छा हुआ।

# मैं नहीं समझता था कि इन दो आँखों की महाराज को कभी जरूरत पड़ सकती है। अब अंधा आदमी घड़ी कैसे ठीक कर सकता है?

# यह कौन सा हिस्सा है? हाँ, यह घड़ी ही है……यही मेरी घड़ी है। इधर…… इधर बड़ा चक्कर होना चाहिए। क्या यही चक्कर है? यह रहा! कैसा बेजान पड़ा है।

# तुम चुप क्यों हो? दिल से दुखी हो न, इसलिए।…..तुम्हें इस घड़ी पर भी गुस्सा आता होगा। जिससे मोह होता है, उसी पर सबसे ज्यादा गुस्सा आता है।

# हानूश भाई, तुम रोज इधर बाग में आते हो न। हम रोज तुम्हें देखते हैं। हमने अपनी घरवाली से कहा-तुम देखना, हानूश कुल्फ़साज ने ऐसी चीज़ बनाई है जो सदियों तक चलती रहेगी। हम-तुम यहाँ नहीं रहेंगे, हानूश भी नहीं होगा मगर हानूश की घड़ी हमेशा बजती रहेगी।

# मुझसे कहने लगा : ‘तुम घड़ी के साथ कैसे रूठ सकते हो हानूश, तुम्हीं ने तो उसे बनाया है। बनानेवाला भी कभी अपनी चीज़ को तोड़ता है!’ उसकी बातें सुनकर मुझे शर्म महसूस होने लगी, कात्या। मैं अपने को बहुत छोटा महसूस करने लगा। और फिर, मैंने अपने लिए तो घड़ी नहीं बनाई थी न, कात्या, यह तो सबकी चीज़ थी। एक बार बन गई तो सबकी हो गई, मेरी कहाँ रह गई!

# घड़ी बन सकती है, घड़ी बन्द भी हो सकती है। घड़ी बनाने वाला अंधा भी हो सकता है, मर भी सकता है, लेकिन यह बहुत बड़ी बात नहीं है। जेकब चला गया ताकि घड़ी का भेद जिंदा रह सके, और यही सबसे बड़ी बात है। 

अगर आपने भाग 1, 2, 3 और 4 नहीं पढ़ा है तो आप उसे इस लिंक में क्लिक करके पढ़ सकते हैं👇

भीष्म साहनी : हानूश (भाग 1) | DREAMING WHEELS

भीष्म साहनी : हानूश ( भाग 2 ) | DREAMING WHEELS

भीष्म साहनी : हानूश (भाग 3) | DREAMING WHEELS

भीष्म साहनी : हानूश (भाग 4) | DREAMING WHEELS

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