मन्नू भंडारी : मैं हार गई (भाग 1)
मन्नू भंडारी हिंदी साहित्य का एक जाना-माना नाम है। उन्होंने अनेक कहानियां, उपन्यास, पटकथाएं और नाटकों की रचना की है। उनके पिता सुखसम्पतराय भी लेखक थे सो लेखन उन्हें विरासत में मिला। यों तो वे बहुत कम उम्र से ही कहानियां लिखने लगी थीं पर प्रसिद्धि धर्मयुग पत्रिका में प्रकाशित होने वाले उपन्यास ‘आपका बंटी’ से मिली।
‘मैं हार गई’ इनका कहानी संग्रह है जिसका प्रथम पुस्तकालय संस्करण 1957 में हुआ था। इस संग्रह में कुल बारह कहानियां हैं जिनमें से प्रमुख हैं-ईसा के घर इनसान, गीत का चुम्बन, एक कमजोर लड़की की कहानी, सयानी बुआ, दो कलाकार और मैं हार गई।
ज़्यादातर कहानियों के मुख्य पात्र स्त्रियां हैं जो विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों से जूझती हुई नजर आती हैं चाहे वह ईसा के घर इनसान की एंजिला हो, गीत का चुम्बन की कनिका हो, एक कमजोर लड़की की कहानी की रूप हो या कील और कसक की रानी हो l
1: ईसा के घर इनसान
रत्ना ने अभी-अभी कॉलेज में पढ़ाना शुरू किया है और सरीन और मिसेज़ शुक्ला के साथ स्टाफ़ क्र्वाटर में रहती है। रत्ना आज कॉलेज से जल्दी आ गई है, मिसेज़ शुक्ला बरामदे में लेटे हुए जेल की ऊँची-ऊँची दीवारों को देख रही हैं। वे कुछ दिनों से छुट्टी पर हैं क्योंकि उनकी तबियत खराब है। वे रत्ना से पूछती हैं कि उसे कॉलेज में कैसा लग रहा है? इस पर रत्ना कहती है कि उसे यह जगह बहुत पसंद है।
चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ, हर तरफ हरियाली और एकान्त में बसा यह कॉलेज। बस एक बात खटकती है कॉलेज के ठीक सामने जेल।
इस तरह वे दोनों जेल, वहाँ रहने वाले कैदियों, कॉलेज के स्टाफ़ की चर्चा करने लगती हैं।
कॉलेज मदर चलाती हैं। सिस्टर ऐनी और सिस्टर जेन भी बड़ी अच्छी हैं, हमेशा हँसती रहती हैं पर सिस्टर लूसी और मेरी उदास रहती हैं। ऐनी और जेन अपनी मर्ज़ी से नन बनी थीं पर लूसी और मेरी ने कॉलेज और चर्च के सिवा और कुछ नहीं देखा। इन सबसे अलग सिस्टर जूली है जो हमेशा चहकती रहती है।
तभी सरीन वहां घबराई हुई आती है और बताती है कि जूली ने फोर्थ इयर की क्लास में कीट्स की कविता समझाते हुए एक लड़की को बाहों में लेकर चूम लिया। यह बात सारे कॉलेज में फैल गई। मदर नाराज़ हो गईं और लूसी को चर्च में फ़ादर के पास भेज दिया गया।
फ़ादर एक दिव्य पुरूष हैं। बाहर से भी लोग आत्मा की शुद्धि के लिए उनके पास आते हैं। वे अपनी अलौकिक शक्ति से मन के सारे विकार दूर कर देते हैं। मिसेज़ शुक्ला बताती हैं कि जो लूसी आज इतनी भावहीन दिखाई देती है वह पहले जूली जैसी ही थी पर फ़ादर ने तीन दिन में ही उसकी काया पलट कर दी थी।
यह सब सुनकर रत्ना संशय में पड़ जाती है। उसकी आँखों के सामने कभी जूली तो कभी फ़ादर का चेहरा घूमने लगता है। दो दिन बाद जूली दिखाई देती है पर अब वह पहले जैसी नहीं रही, उसकी चंचलता गायब हो चुकी है।
एक महीने बाद मदर ने रत्ना को रोज चर्च जाकर एक घन्टा सिस्टर्स को हिंदी सिखाने के लिए कहा। रत्ना तुरन्त तैयार हो गई क्योंकि उसे फ़ादर और नन्स को और करीब से जानने का मौका मिल रहा था।
उसी दिन शाम को सरीन बताती है कि आजकल लूसी में बदलाव नजर आने लगे हैं। अब वह पहले जैसे गुमसुम नहीं रहती। थर्ड इयर में पढ़ने वाली अनिमा का भाई किसी ना किसी बहाने से कॉलेज आया करता है और विज़िटर्स को अटैंड करने का काम लूसी का है। जिस दिन वह आता है लूसी ख़ुश दिखाई देती है। लूसी का नया रूप देखकर रत्ना को थिरकती हुई जूली याद आने लगती।
पहली तारीख से रत्ना ने शाम को चर्च जाना शुरू कर दिया। उसे पढ़ाते हुए लगभग एक महीना हो गया था। एक दिन मिसेज़ शुक्ला ने उसे जल्दी लौटकर आने को कहा। रत्ना जब चर्च के मैदान में पहुँची तो उसे किसी स्त्री के चीखने-चिल्लाने की आवाज़ें सुनाई दी। एक बहुत ही खूबसूरत नन हाथ-पैर पटक-पटककर बुरी तरह चिल्ला रही थी। वह कह रही थी कि-“देखो कितनी सुंदर साड़ी पहन रखी है इसने! फिर हम क्यों अच्छे कपड़े नहीं पहनें? हम इनसान नहीं हैं……? मैं नहीं रहूँगी यहाँ, मैं कभी नहीं रहूँगी। देखो मेरे रूप को……..” मदर और दूसरी नन्स उसे संभाले हुए थीं पर वह लगातार बोले जा रही थी-” मैं अपनी जिंदगी को , अपने इस रूप को चर्च की दीवारों के बीच नष्ट नहीं होने दूँगी। मैं जिंदा रहना चाहती हूँ, आदमी की तरह जिंदा रहना चाहती हूँ। मैं इस चर्च में घुट-घुटकर नहीं मरूँगी…. मैं भाग जाऊँगी,मैं भाग जाऊँगी……।” तभी ऐनी वहाँ आती है और कहती है कि फ़ादर ने बुलाया है। सभी उसे जबरदस्ती उठाकर फ़ादर के पास ले जाती हैं। उस दिन क्लास नहीं हो पाती और रत्ना लौट आती है। रत्ना महसूस करती है कि इस घटना से लूसी के चेहरे पर एक खास तरह की चमक आ गई है।
दूसरे दिन लूसी रत्ना को बताती है कि जो नई सिस्टर आई है उसका नाम एंजिला है और वह चर्च से भाग गई थी, पर फिर पकड़ ली गई। फ़ादर भी उसे क़ाबू में नहीं कर पा रहे हैं और उसका पागलपन जारी है।
चौथे दिन सुबह रत्ना और मिसेज़ शुक्ला घूमने निकले तो देखा कि एंजिला सामने से आ रही थी और वह शान्त भी थी। रत्ना के पूछने पर उसने कहा कि “मुझे कोई नहीं रोक सकता, जहाँ मेरा मन होगा, मैं जाऊँगी। मैंने तुम्हारे फ़ादर …….. ” और वह चली गई।
इस बार फ़ादर का जादू-मन्तर काम नहीं आया। अपनी असफलता से वे बहुत दुखी हुए और उनकी तबीयत खराब हो गई। इस घटना के तीसरे दिन ही रात में चर्च की छोटी-छोटी दीवारों को लाँघकर लूसी भी चली गई।
बड़ी विचित्र स्थिति थी। एक ओर एंजिला फ़ादर की अलौकिक शक्ति को चुनौती देकर चली गई तो दूसरी ओर लूसी ने भी अपने सपनों का दामन थाम लिया।
मदर बहुत परेशान हैं आखिर क्या असर होगा कॉलेज की लड़कियों पर। दो दिन बाद चर्च और कॉलेज की दीवारें ऊँची की जाने लगीं।
चुनिन्दा पंक्तियाँ :
# फाटक से निकलते ही जेल के दर्शन होते हैं तो लगता है, सवेरे-सवेरे मानो खाली घड़ा देख लिया हो; मन जाने कैसा-कैसा हो उठता है।
# इस अनन्त आकाश के नीचे और विशाल भूमि के ऊपर रहकर भी कितना सीमित, कितना घुटा-घुटा रहता होगा उनका जीवन ! चाँद और सितारों से सजी इस निहायत ही खूबसूरत दुनिया का सौंदर्य, परिवारवालों का स्नेह और प्यार, जिंदगी में मस्ती और बहारों के अरमान क्या इन्हीं दीवारों से टकराकर चूर-चूर न हो जाया करते होंगे? इन सबसे वंचित कितना उबा देनेवाला होता होगा इनका जीवन-न आनन्द, न उल्लास, न रस।
# फ़ादर ने उसकी आत्मा को पवित्र कर दिया, उसकी आत्मा के विकार मिट गए; पर मुझे लगता था जैसे जूली की आत्मा ही मिट गई थी, मर गई थी।
# ऐसा लगता था- इनकी आँखे, आँखे न होकर दो कब्रें हैं जिनमें उनके मासूम दिलों की सारी तमन्नाओं को, सारे अरमानों को मारकर सदा-सदा के लिये दफना दिया हो।