रस्किन बॉण्ड की बेहतरीन कहानियाँ ( भाग 1 )| DREAMING WHEELS
रस्किन बॉण्ड का जन्म 19 मई 1934 को कसौली, हिमाचल प्रदेश में हुआ था। नाम से अंग्रेज लगने वाले ये लेखक दिल से भारतीय हैं। इनके लेखन में इनकी परवरिश का प्रभाव साफ झलकता है। कभी ये जामनगर, कभी देहरादून, कभी नई दिल्ली तो कभी शिमला में रहे। युवा होने पर चार साल चैनल आइलैंड्स और लंदन में भी बिताए। इनके द्वारा चित्रित पात्रों में इनके बचपन की झलकियाँ साफ दिखाई देती हैं खासकर रस्टी के रूप में।
उन्होंने अपना पहला उपन्यास ‘ द रूम ऑन द रूफ ‘ सत्रह वर्ष की आयु में लिखा जिसके लिए उन्हें 1957 में जॉन लेवलिन रीस स्मृति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें 1992 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1999 में पद्मश्री तथा 2014 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
‘ देवदारों के साये में ‘ इनकी आठ बेहतरीन नई कहानियों का संग्रह है जिसका हिंदी अनुवाद आशुतोष गर्ग द्वारा किया गया है। इसमें रहस्य और रोमांच के साथ हास्य का पुट भी है। लेखक मिस रिप्ली-बीन के माध्यम से कहानियां सुनाते हैं जिसमें उनका तिब्बती टेरियर कुत्ता फ़्लफ़, पियानोवादक लोबो और होटल रॉयल का मालिक नन्दू श्रोता बन अपने विचार भी प्रस्तुत करते हैं। कहानी का वर्णन इस प्रकार किया जाता है कि सारी घटनाएं सामने होती हुई प्रतीत होती हैं।
1. देवदारों के साये में
वर्ष 1967 में अक्टूबर का महीना चल रहा था। होटल रॉयल में वार्षिक पुष्प-प्रदर्शनी चल रही थी। पुरानी नृत्यशाला डहलिया बैंक के डहलिया फूल, कपूरथला महल के गुलदाउदी फूल, कम्पनी बाग के कषायमान के फूल, स्टेट बैंक के नागफनी, राजपिपला महल के बिगोनिया और कई दूसरे सुंदर फूलों से सजी हुई थी। नृत्यशाला मेहमानों से भरी हुई थी। विशेष मेहमानों में कर्नल बक्शी, श्रीमती बक्शी, श्रीमती बसु, मिस गमलाह, डॉ राइनहार्ट आदि थे। पुरस्कार देने के लिए कपूरथला की राजकुमारी भी आई थी। लोग गपशप कर रहे थे। मिस गमलाह, डॉ राइनहार्ट से बातें कर रही थी जो दो सालों से मसूरी में रह रहे थे। रॉयल के ही एक भाग में उनका चिकित्सालय था परन्तु इसके पहले वे कहाँ थे यह रहस्य ही था। वहाँ मिस रिप्ली-बीन भी उपस्थित थीं जिसे सभी जानते थे क्योंकि वह उसी होटल के मालिक की बेटी थीं जिसने नन्दू के पिता को होटल इसी शर्त पर बेचा था कि उनकी पुत्री हमेशा वहाँ रह सकेंगी। मिस रिप्ली-बीन को पुष्प-प्रदर्शनियां पसंद थीं इसलिए वे वहाँ आई थीं बावजूद इसके कि उनके दाँत में दर्द था। लोबो लाउन्ज में बैठकर पियानो बजा रहा था। मिस रिप्ली-बीन प्रदर्शनी से निकलकर देवदार के वृक्ष के नीचे बेंच पर बैठ गईं। तभी उन्हें नृत्यशाला की बाहरी दीवार पर बनी दो बड़ी परछाइयाँ नजर आई। देखकर ही बताया जा सकता था कि वे दोनों आपस में झगड़ रहे थे। मिस रिप्ली- बीन उस ओर जाने के लिए खड़ी हुईं तभी परछाइयाँ गायब हो गईं और अंधेरे में एक आकृति बाहर निकली जिसने उनकी तरफ देखा और बाहर निकल गई।
मिस रिप्ली-बीन उसे पहचान नहीं पाई। नृत्यशाला में अब भी पुरस्कार वितरण चल रहा था। प्रथम पुरस्कार श्रीमती बसु को दिया गया था और उनका नाम पुकारा जा रहा था पर वह कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। कर्नल बक्शी उन्हें यह कहते हुए खोजने बाहर जाते हैं कि श्रीमती बसु दस मिनट पहले कहीं बाहर निकली थीं। नन्दू पुरस्कार वितरण समाप्त कर लोगों का धन्यवाद कर ही रहे थे कि कर्नल बक्शी घबराए हुए वापस आते हैं और बताते हैं कि श्रीमती बसु को कुछ हो गया है। वह बाहर फुलवारी में गिरी पड़ी हैं। लगता है कि मर चुकी हैं। नन्दू व अन्य लोग बाहर की तरफ भागते हैं। श्रीमती बसु की गर्दन के चारों ओर बेल लिपटी हुई थी। लगता था उन्हें गला घोंटकर मारा गया है।
मिस रिप्ली-बीन को विश्वास था कि कुछ दुर्घटना हो गई है और उन्हें बहुत घबराहट हो रही थी। लोबो उन्हें देखकर पियानो बजाना छोड़ देता है और उनके कहने पर बाहर जाकर देखता है और आकर बताता है कि श्रीमती बसु की मृत्यु हो चुकी है। यह जानकर मिस रिप्ली-बीन को चक्कर आने लगते हैं। लोबो उन्हें उनके कमरे में छोड़ने जाता है जहाँ मिस रिप्ली-बीन उसे पुदीने वाली शराब पीने को देती है जिसकी रेसिपी उन्होंने खुद ईजाद की थी। उस रात मिस रिप्ली-बीन रेडियो चलाकर ही सो जाती हैं और पास ही उनका कुत्ता फ्लफ भी सो जाता है। एक या दो घण्टे बाद वह फ्लफ की गुर्राहट से जागती हैं। उन्हें ऐसा लगता है जैसे कोई खिड़की से देख रहा था। कुछ और आवाजें भी आती हैं जो फ्लफ के भौंकने की वजह से बंद हो जाती हैं। दूसरी सुबह वे दाँत-दर्द के साथ उठती हैं। दवा लेकर वह सुबह की सैर को निकल पड़ती हैं। उन्हें डॉ. राइनहार्ट मिलते हैं जो उनका सूजा हुआ जबड़ा देखकर दाँत-दर्द के बारे में पूछते हैं। तब मिस रिप्ली-बीन बताती हैं कि यह दो दिन से परेशान कर रहा है, उन्हें लगता है कि इसे निकलवा देना चाहिए। इस पर डॉ. राइनहार्ट कहते हैं कि आज सुबह वे व्यस्त हैं और दोपहर को श्रीमती बसु को दफनाने जाना है इसलिए उन्हें वे कल देखेंगे।
मिस रिप्ली-बीन भी श्रीमती बसु को दफनाने के कार्यक्रम में कब्रिस्तान जाती हैं। लौटते हुए अंधेरा हो चुका है और वे अकेले चल रही हैं। अचानक उन्हें बाईं पहाड़ी की ढलान से नीचे आती चट्टान की तेज आवाज सुनाई देती है। वे तेजी से भागने लगती हैं जिससे चट्टान उनके पीछे गिरती है। वह भागते हुए बाज़ार पहुँचती हैं और पुस्तकालय की सीढ़ियों पर बैठ जाती हैं। वहाँ उन्हें लोबो मिलता है पर वह उससे ज्यादा कुछ नहीं कहतीं। उस रात वे बिस्तर पर लेटी रहीं पर उन्हें नींद नहीं आती। एक तो अंदर का डर और दूसरे दाँतो की पीड़ा। अगले दिन ठीक साढ़े दस बजे वह डॉ. राइनहार्ट के पास पहुंच जाती हैं।
डॉ. राइनहार्ट मुस्कुराहट के साथ मिस रिप्ली-बीन का अभिवादन करते हैं। वह मिस रिप्ली-बीन के दाँतों को अपने औजार से ठोककर खराब दाँत की खोज करते हैं और बताते हैं कि इसे निकालना पड़ेगा। मिस रिप्ली-बीन इसके लिए राजी हो जाती हैं। तब डॉ. राइनहार्ट उन्हें कहते हैं कि वह उन्हें नोवासिन का इंजेक्शन लगा देंगे ताकि दर्द महसूस ना हो। इंजेक्शन तैयार हो जाने पर वे मिस रिप्ली-बीन से बातें करने लगते हैं और कहते हैं कि उसे श्रीमती बसु पर दया आ रही है परन्तु उसे तो जाना ही था। वह आकर्षक थी और अपनी बुद्धि का दुरुपयोग करती थी। लोगों को धमकाती थी और उसे भी धमका रही थी। वह उनसे कई महीनों से पैसे ऐंठ रही थी क्योंकि वह मेरा अतीत जान गई थी।
अतीत के बारे में मिस रिप्ली-बीन के पूछने पर वह बताते हैं कि पहले वह जर्मनी में नाज़ी पार्टी के कैंप में दाँतों का डॉक्टर था। वहाँ लाए सभी यहूदियों की जाँच करता था और यदि कोई मरीज परेशान करता तो नोवासिन की दोहरी खुराक उसे हमेशा के लिए शांत कर देती थी। वह मिस रिप्ली-बीन से मुँह खोलने को कहता है जो घबराहट से पहले ही खुला हुआ है। वह उनसे कहता है कि अब ये दोहरी खुराक आपके लिए। वह जानता है कि उस दिन देवदार के वृक्ष के नीचे बैठे हुए आपने मुझे श्रीमती बसु को मारते हुए देखा था।
मिस रिप्ली-बीन मुँह खोलती हैं और जोर से बचाओ-बचाओ चिल्लाने लगती हैं। दरवाजा खुलता है और फ्लफ भौंकता हुआ अंदर आता है और डॉक्टर के पैरों में अपने दाँत गड़ा देता है। आवाज सुनकर लोबो भी दौड़ता हुआ अंदर आता है। तभी डॉ. राइनहार्ट एक गहरी सांस लेते हैं और सुई को अपने हाथ की नस में घुसा लेते हैं। वह दवाई अपना काम करती है और वे नीचे गिर पड़ते हैं। अब तक नन्दू, माली, रसोइया और चौकीदार भी आ जाते हैं। नन्दू कहता है-‘एक और लाश! पता नहीं यह होटल कैसे चलेगा।’
चुनिंदा पंक्तियाँ :
# उन्होंने अनेक वर्षों तक अकेले रहने के बाद सीख लिया था कि संसार में जीने का सबसे अच्छा तरीका है कि व्यक्ति अपने काम से मतलब रखे। आवश्यकता के समय सहायता करना अच्छी बात है, परन्तु आगे बढ़कर खुद को मुसीबत में नहीं फंसाना चाहिए।
# आवास-गृह वाले युवक ने अपनी आँखों से आँसू पोछे। किसी ने अतिरिक्त भावुकता नहीं दिखाई, किन्तु मिस गमलाह ने एक बड़ा-सा रूमाल निकाला और जोर-से नाक साफ की। यह भी एक तरह की भावुक अभिव्यक्ति थी।
# पशु के बारे में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है, किन्तु मनुष्यों के विषय में कुछ भी कहना मुश्किल है। अत्यंत आकर्षक और संकोची मनुष्यों ने प्रायः भयंकर एवं नृशंस अपराधों को अंजाम दिया है।
# अगले दिन पुराने मित्र की भाँति, सुबह ने दस्तक दी तो कुछ राहत मिली। पहले पहर की रोशनी हमेशा भरोसा दिलाती है। सुबह हो गई है! एक नया दिन सामने है। मानव जाति, और दाँत के दर्द से परेशान लोगों के लिए अभी आशा शेष है।
# नकली दाँत नहीं, कोई दुर्गंध नहीं। इस व्यवसाय के लिए यह अच्छा विज्ञापन था। राइनहार्ट को देखकर मिस रिप्ली-बीन को अपने मनपसंद अभिनेता ग्रेगरी पेक की याद आती थी।
# ‘उस दिन आपने सबकुछ देखा था, है ना ? आप देवदार के नीचे बेंच पर बैठी थीं। मैंने बाद में आपको बैठे देखा था। आपने सबकुछ देख लिया होगा।’
‘सबकुछ? मैंने कुछ नहीं देखा। वहाँ देखने को क्या था?’
‘वह भली महिला , जिसे मैंने गला दबाकर मार डाला।’
‘हे भगवान!’ मिस रिप्ली-बीन को डॉक्टर अब ग्रेगरी पेक जैसा नहीं लग रहा था।
# अगर आप मुँह नहीं खोलेंगी तो इंजेक्शन आपके जबड़े में लग जाएगा। मिस रिप्ली-बीन के लिए दोहरी खुराक। देखने से लगेगा आपका हृदय इस खुराक को सहन नहीं कर पाया। यह बात बिल्कुल सही है।
इस पुस्तक में और भी ऐसी कहानियां हैं जिसे पढ़ने के बाद बाद लगता है कि क्या कोई किसी की हत्या करने के बाद भी इतना खुश रह सकता है! तो रोमांच को बनाये रखते हुए चलते हैं अगली कहानी की तरफ जिसे आप पढ़ सकते हैं भाग 2 में।