सत्य व्यास : दिल्ली दरबार (भाग 1) | दिल्ली दरबार (उपन्यास)

  सत्य व्यास : दिल्ली दरबार (भाग 1) 

सत्य व्यास आज के जमाने के जाने-माने लेखक हैं जिनके सिर्फ पाँच उपन्यास ही आए हैं पर सभी ने युवाओं के दिलों पर राज किया है। उनकी सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी पुस्तकों का दूसरी भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है। उनका पहला उपन्यास ‘ बनारस टॉकीज ‘ 2015 में प्रकाशित हुआ था।

मैं इस भाग में उनके दूसरे उपन्यास ‘ दिल्ली दरबार ‘ के बारे में बताने जा रही हूँ जिसे पढ़कर मुझे बहुत मज़ा आया। उपन्यास पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे कोई फ़िल्म चल रही हो और संवाद नहीं यह कहना ठीक नहीं होगा बल्कि कहना  चाहिए डायलॉग्स में नवीनता है साथ ही साथ शायरी का इस्तेमाल भी कमाल है।

लेखक ने सभी भागों के शीर्षक भी बहुत फिल्मी रखे हैं जिन्हें पढ़कर ख़यालों की दुनिया आबाद होने लगती है और वे उपयुक्त भी हैं।

कहानी का आधार बहुत सरल है, हमारी हिंदी फिल्मों जैसा दो लड़के और एक लड़की; हाँ साथ में कुछ और लड़कियाँ भी हैं पर दो लड़के और एक लड़की सुनते ही जो पहली सोच आपके दिमाग में आ रही होगी वैसा प्रेम त्रिकोण नहीं है…… तो कहानी है क्या? कहानी में दो दोस्त हैं जिनमें से एक मुख्य भूमिका निभा रहा है और दूसरे को व्यास जी ने कथाकार के रूप में प्रस्तुत किया है।

                        साहब

जिस दिन राहुल मिश्रा पैदा हुए उस दिन उनके पिता की सरकारी नौकरी लगी थी और वे लोग गांव छोड़कर टाटा नगर आ गए। वो दिन देवदत्त मिश्रा की जिंदगी का आखरी दिन था जब वे खुश हुए थे क्योंकि अब राहुल मिश्रा धरती पर अवतरित हो चुके थे।

राहुल के मुताबिक वह प्यार करने के लिए ही पैदा हुए हैं और इसके लक्षण छठी कक्षा से ही दिखाई देने लगे जब उन्होंने अपनी क्लास टीचर को ‘आई लव यू ‘ कहा। आठवीं कक्षा में इतिहास का पेपर अधूरा छोड़ दिया क्योंकि भव्या के पेन की इंक खत्म हो गई थी और राहुल के पास दूसरी पेन नहीं थी। ग्याहरवीं में मैथ्स सिर्फ इसलिए छोड़ दिया क्योंकि बायोलॉजी वाले ट्यूशन सर की बेटी बहुत सुंदर थी।  बीएससी फर्स्ट ईयर में सिद्धि तो सेकंड ईयर में एक मिनट छोटी जुड़वा बहन रिद्धि। वो लड़कियों के लिए झगड़ते हैं और लड़कियाँ उनके लिए।

ये सब राहुल के बारे में जानने वाले हम हैं उसके लँगोटिया यार मोहित सिंह।  मेरी हेयर स्टाइल की वजह से सब मुझे ‘झाड़ी’ कहते हैं। हम दोनों कक्षा दूसरी से एक साथ हैं पर मैं किताबी कीड़ा हूँ और मेरा आईक्यू लेवल भी राहुल जैसा नहीं है। राहुल के किस्से तो इतने हैं कि कभी खत्म न हों पर  शुरू करते हैं ग्रैजुएशन के ठीक पहले वाले वैलेंटाइन से।

            सत्य व्यास : दिल्ली दरबार  ( भाग 1 )

राहुल वैलेंटाइन डे से एक दिन पहले घर आया और एक कमरे का जुगाड़ करने के लिए कहने लगा। उसे जसप्रीत के साथ प्रैक्टिकल करना था। उसने कहा कि जसप्रीत का भाई कल बाहर जा रहा है। मैंने उससे कहा कि विशाल से बात करके देखता हूँ। दूसरे दिन राहुल हड़बड़ी में मेरे घर का पिछला दरवाजा खटखटा रहा था। मैंने खोलकर देखा तो वो पसीने से लथपथ, धूल में सने फटे कपड़ों के साथ खड़ा था। उसने बताया कि जसप्रीत का भाई आ गया था और उसने मुझे खूब मारा। मुझे उसकी हालत पर बड़ी हंसी आई पर मैं हंस नहीं सकता था।

फिर उसने टीशर्ट बदली और बाइक निकालने को कहा। मुझे लगा कि वह जसप्रीत के भाई से हिसाब चुकता करना चाहता है। मुझे डर लग रहा था क्योंकि मैं लड़ाई-झगड़े से दूर ही रहना पसन्द करता हूँ। अब राहुल बाइक छोटी-छोटी गलियों में घुमाने लगा और आखिर में एक अनजान गली में एक पानवाले की दुकान के सामने खम्बे में ले जाकर ठोकर मार दी। हम दोनों गिरे और पानवाले भईया आ गए हमें उठाने। जब वापसी में मैंने उससे पूछा कि ये क्या नाटक था तो उसने कहा कि घरवालों को ऐसी हालत के लिए कुछ तो बताना होगा इसलिए एक्सीडेंट किये और पानवाले को गवाह बनाए।

थर्ड ईयर की परीक्षाओं के बाद मैंने सीडीएस की तैयारी के साथ एमबीए का भी फार्म भर दिया। मेरे साथ राहुल ने भी फार्म बस भर दिया था। एक दिन सुबह-सुबह जब मैं सो रहा था, विशाल के लगातार कॉल आने लगे। जब आठवीं बार में मैंने फोन उठाया तो वह रो रहा था। उसने कहा कि राहुल दरवाजे के बाहर खड़ा है और कह रहा है कि आज इलाज करके ही जायेगा। तू कुछ कर ना। तब मैंने राहुल को कॉल करके समझाया कि इतने में ही वह ढीला हो चुका है, उसे छोड़ दे और यह भी कि हम दोनों का AIPM में सलेक्शन हो गया है और काउंसलिंग के लिए दिल्ली जाना है।

इधर पेपर में हमारा रोल नम्बर छपा और उधर मोहल्ले वालों ने हमारी शिकायत घर पर कर दी सो आज राहुल के घर पर हमारी पेशी है और हम सर झुकाकर खड़े हैं। दोनों के पापा गुस्से में हैं और हमारी खबर ले रहे हैं पर सेलेक्शन की बात सुनकर तापमान गिर रहा है और अब दिल्ली जाने की तैयारी शुरू।

चुनिन्दा पंक्तियाँ :

# राहुल मिश्रा जिस साल पैदा हुए उस साल फिल्मी दुनिया  में प्यार, हमारी दुनिया में तकरार और आभाषी दुनिया में ऑप्टिकल फाइबर के तार तेजी से फैल रहे थे।

#  हाँ, और ज्यादा चौंको मत। आँख का टिकली-बिंदी बाहर आ जाएगा। तुमको दुनिया से क्या मतलब? घर में बैठो। किताब खोलो और थर्मोडायनामिक्स से ही गरम रहो।

# हाँ तो सिलेबस ही तो कम्प्लीट कर रहे हैं। अब देखो, फ़िज़िक्स तो बात ही करता है फिजिकल रिलेशन की, केमेस्ट्री दो लोगों के बीच ही होती है। मैथ्स आज पढ़ा ही रहे थे और बायोलॉजी तो है ही गन्दा सब्जेक्ट। समझ रहे हो ना?

# उसका दोहन होगा पहले। हम मारेंगे झाड़ी उसको। उस दिन उसकी वजह से हमारा और तुम्हारी भाभी का इन्ट्रीग्रेशन होते-होते डिफ्रेंसिएसन  हो गया था।

# इसकी शिकायत करते-करते प्रिंसिपल रिटायर हो गया। इतनी बार शिकायत है कि उसके कॉलेज में इससे ज्यादा अटेंडेंस तो मेरा होगा।

यह उपन्यास के पहले भाग का संक्षिप्त रूप है। इसके संवाद इतने रोचक हैं कि पढ़ने में मजा आता है और जिज्ञासा बनी रहती है कि दिल्ली में क्या-क्या होगा? अगर आप भी जानना चाहते हैं तो पढ़े भाग 2। 

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