चेखव:संवेदनाओं का चर्चित चितेरा (भाग 1)
रूसी साहित्य का एक जाना-माना लेखक जिसने अनेक विधाओं में अपनी लेखनी का जादू बिखेरा। उनकी कहानियों को पढ़कर ऐसा लगता है जैसे वह आपके सामने ही घटित हो रहा हो। चेखव अपने पात्रों की भावनाओं का वर्णन इस प्रकार करते हैं जैसे वह स्वयं उनके साथ हो रहा हो चाहे वह सुख-दुख हो,मन की पीड़ा हो, उत्तेजना हो या बैचेनी हर परिस्थिति में वे खरे उतरते हैं।
मैंने उनकी बहुत सी कहानियां पढ़ी हैं। इस लेख में मैं आपको उनकी पांच दुर्लभ कहानियों के बारे में बताने जा रही हूँ जिनमें गहरी मानवीय संवेदना प्रकट हुई है।ये पाँचो कहानियां मैंने अपनी पसंदीदा पत्रिका ‘अहा जिंदगी’ के वर्ष 2012 के वार्षिक विशेषांक में पढ़ी थीं।
1: दुख
यह कहानी एक कोचवान इओना पातापोव और उसकी घोड़ी की है जो सर्द बर्फीली रात में यात्री ढूंढने को मजबूर हैं। तीन दिन पहले ही उसके बेटे की मौत हो गई थी और उसकी बेटी भी गांव में थी। वह एक गहरे दर्द से गुजर रहा था और अपने मन में उठती हुई वेदनाओं के बाढ़ को किसी के सामने उडेल देना चाहता था परन्तु उसे जितने भी लोग मिले सब अपनी आपाधापी में व्यस्त और उसकी पीड़ा से बेख़बर थे।सबसे पहले एक अधिकारी फिर तीन आवारा लोग उसकी गाड़ी में बैठे, फिर एक दरबान और अंत में कोचयार्ड में वापस लौट आने पर साथी कोचवान मिला पर किसी ने भी उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया जबकि उसकी पीड़ा बढ़ती ही जा रही थी। वह अपना दर्द किसी के साथ बाँटना चाहता था।आख़िर में उसे एक दिल मिल ही गया जिसने उसकी सारी बातें सुनी और वह थी उसकी घोड़ी इस्सीर।
यह कहानी आज भी उतनी ही सार्थक लगती है जितनी उस समय रही होगी जब इसे लिखा गया था।
सचमुच हम इंसान खुद में इतना मशगूल रहते हैं कि सामने वाले के दुख या स्थिति का अंदाजा ही नहीं लगा पाते और मुझे लगता है कि इसका कारण है हम जानना ही नहीं चाहते।
अकस्मात अपने बेटे की मृत्यु के दुख से इओना के अंदर भावनाओं का जो ज्वार उमड़ रहा था वह उसे व्यक्त करने के लिए एक साथी ढूंढ़ रहा था जिससे अपनी मन की सारी बातें कह दे। आखिर में वह साथी बनी उसकी अपनी घोड़ी।
चेखव ने इओना के दुख का वर्णन जिस प्रकार किया है वह बहुत ही मार्मिक है। मन में क्या चल रहा है इसे शब्दों में उतारना एक दुष्कर कार्य है जो चेखव जैसा जादूगर ही कर सकता है। हरेक पात्र की वेशभूषा और चरित्र-चित्रण इस तरह किया गया है कि लगता है जैसे वह हमारे सामने ही हो।
चुनिन्दा पंक्तियाँ:
# बॉक्स पर चिपके हुए इओना की श्वेत काया इतनी गतिहीन थी कि उसे देखते ही बर्फ़ के बेज़ान बुत का वहम हो सकता था।
# कोई भी जो हल की जोत की ऐंठन-सा टूटा हुआ हो , इस चिरपरिचित दृश्य का दाह झेल रहा हो, भयानक रौशनियों के मारक नृत्य का शिकार हो, लोगों की बेराह बढ़ती बेतहाशा भीड़ में उतरना भूल चुका हो, वह घोंसलों में माँ की प्रतीक्षा करते चिड़ियों के बच्चों की तरह बैचैन होने से बच नहीं सकता था।
# ‘धरती माँ ही अब मेरे लिए अकेली औरत है…….मेरा मतलब है कब्र ! मेरा बेटा जाकर मर गया, देख रहे हो….. और मैं जिंदा हूँ……. अजीब बात है न! मौत ने गलत दरवाज़े पर दस्तक दे दी……. मेरे पास आने की जगह वह मेरे बेटे के पास चली गई…..।’
2: कोलाहल
यह कहानी है एक मेहनती और स्वाभिमानी लड़की माशेन्का की जिसके पिता स्कूल टीचर थे और वह हाल ही में गुरुकुल से स्नातक हुई थी। अब वह कुश्किन परिवार में गवर्नेस का काम कर रही थी।वह अच्छी तरह जानती थी कि बड़ी हवेलियों में काम करने पर किस प्रकार की परिस्थितियों से सामना हो सकता है क्योंकि अमीर लोग अपने झूठे अहं की संतुष्टि के लिए सारी हदें पार कर सकते हैं। एक दिन जब वह वॉक से लौटी तो घर का शोर बाहर तक आ रहा था। दरबान बुरी तरह डरा हुआ था, एक नौकरानी रोये जा रही थी। मलिक माशेन्का के कमरे से चिल्लाता हुआ आ रहा था।
जब माशेन्का अपने कमरे में जाती है तो वह देखती है कि मालकिन उसके कमरे की तलाशी ले रही है, उसकी हर चीज बिखरी पड़ी है। वह बहुत डर जाती है क्योंकि वह एक संवेदनशील युवती थी और ऐसा व्यवहार उसके साथ पहले कभी नहीं हुआ था। दूसरी नौकरानी उसे बताती है कि मालकिन का एक क़ीमती ब्रोच खो गया है तब उसका डर आश्चर्य मिश्रित क्रोध में बदल जाता है।अपने ऊपर चोरी का संदेह उसे अंदर तक झकझोर देता है। इस अपमान को सहन करना उसके लिए कठिन होता जा रहा था। वह डिनर टेबल से भी उठकर आ जाती है और उसके मन में अनेकों विचार घुमड़ने लगते हैं। अंततः वह उस घर को छोड़ने का फ़ैसला कर लेती है। क़ुछ देर बाद मालिक निकोलाई सेर्गेयविच वहाँ आते हैं और उससे अपनी और अपनी पत्नी की तरफ से माफी मांगते हैं और बताते हैं कि वह ब्रोच उन्होंने ही चुराया है क्योंकि उन्हें पैसों की जरूरत थी। वह बहुत शर्मिंदा हैं पर माशेन्का अपना स्वाभिमान हारकर वहाँ रुकना मंजूर नहीं करती और चली जाती है।
कहानी में चेखव ने परिस्थितियों, भावनाओं, क़िरदारों का जिस प्रकार वर्णन किया है वह बहुत ही सुंदर है। कहानी पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे हम खुद इस कहानी का हिस्सा हैं। हम किरदारों के चेहरों की कल्पना करने लगते हैं चाहे वह मालकिन फेदोसिया का क्रूर और अहंकारी रूप हो,मालिक निकोलाई सेर्गेयविच की बेचारगी और चापलूसी हो या सड़क पर अकेली चलती माशेन्का का स्वाभिमान से दमकता मासूम चेहरा।
चुनिन्दा पंक्तियाँ:
# मुझे स्वीकार करना चाहिए कि मैं उन लोगों को पसंद करता हूँ, जो विरोध कर सकते हैं, नाराजगी जाहिर कर सकते हैं, जो स्वाभिमानी हैं, यानी ऐसे लोग……मैं तुम्हारे गुस्से से भरे चेहरे को देखते हुए ताजिंदगी बैठा रह सकता हूँ।
# तो तुम नहीं रुक रही हो? तुमको रुक जाना चाहिए। जानती हो, कम से कम एक शाम के लिए तो रुक ही जाना चाहिए। ताकि एक दिन तो मैं यहाँ आ सकूं और तुमसे बातें कर सकूं। इह? तुम रुक नहीं सकती? अगर तुम चली जाओगी तो इस पूरे घर में एक भी मानवीय चेहरा नहीं रह जाएगा, एक भी इंसान नहीं होगा,ये……..ये बहुत दुखद होगा, बहुत भयानक।
Note: भाग 1 में दो कहानियों का ज़िक्र है।बाक़ी की तीन कहानियां भाग 2 में हैं।