मन्नू भंडारी : मैं हार गई (भाग 3)
मन्नूजी की यह कहानी एक ऐसी लड़की के मन को गहराई में जाकर टटोलने की कोशिश है जो हर बार अपने लिए खड़े तो होना चाहती है पर दूसरों के बनाए गए नियमों में बंधकर निराश होकर बैठ जाती है।
3: एक कमज़ोर लड़की की कहानी
रूप तीन साल पहले बड़ी चंचल और जिद्दी थी पर माँ के हार्ट-फेल के बाद नई माँ की कठोरता ने उसे दस साल की उम्र में ही एकदम से बड़ा बना दिया। आज वह बड़ी ही कम बोलने वाली और डरी-सहमी लड़की है।
आज रूप को जैसे ही पता चला कि उसका स्कूल छुड़ाया जा रहा है और पढ़ने-लिखने की व्यवस्था घर पर ही की जा रही है तो वह मचल उठी। वह स्कूल नहीं छोड़ना चाहती थी, अपने पिता से साफ़-साफ़ कह देना चाहती थी कि चाहे कुछ भी हो जाए यह बात वह कभी नहीं मानेगी। शाम तक कई बार यह बात दुहराते हुए वह अपने पिता का इंतजार करती रही। उनके आ जाने पर जैसे ही उनके कमरे में घुसी पिताजी बोलने लगे कि उन्होंने उसके लिए मास्टरजी की व्यवस्था घर पर ही कर दी है। आजकल स्कूलों में करने के लिए कुछ भी नहीं होता।
रूप के सारे संकल्प पिता के आदेश के साथ बह गए।उसके मुंह से केवल इतना ही निकला-जी पिताजी।
कमरे में आकर बहुत रोई, खुद को कोसा भी पर कोई फायदा नहीं हुआ और दूसरे दिन से वह घर पर ही पढ़ने लगी।
कुछ दिनों में ही रमेश बाबू को एहसास हो गया कि उनका फैसला गलत था क्योंकि अब घर के सारे काम रूप के कंधों पर ही आ गए और वह बिना विरोध के पूरी गृहस्थी सम्हालने लगी। पिता से यह देखा न गया तो सोच-समझकर उन्होंने रूप को उसके मामा घर भेजने का फ़ैसला कर लिया। जब रूप ने देखा कि उसे यहाँ से भेजा जा रहा है तो उसका मन विद्रोही हो गया। उसने सोचा मैं क्यों जाऊं मामा के यहाँ, अपना घर क्यों छोड़ूँ ? इतना काम करती हूँ फिर भी मुझे घर पर नहीं रखना चाहते। मैं नहीं जाऊँगी।
शाम को जैसे ही पिता के दरवाजे के पास पहुँची तब नई माँ पिताजी से कह रही थी कि तुम्हारे ही भेजूँ कहने से कुछ नहीं होगा। रूप तो सुबह से ही रो रही है।
पिताजी बोले कि रूप बड़ी ही समझदार है। वह मेरा कहना कभी नहीं टाल सकती। इस तरह रूप का सारा गुस्सा ढह गया और वह लौट गई।
रूप के मामा डॉक्टर थे। मामा-मामी उसे बहुत प्यार करते थे। उनके घर का तीसरा सदस्य था ललित। उसे डॉक्टर साहब ने बचपन से पाला था। डॉक्टर साहब ने अपनी व्यस्तता के कारण रूप की पढ़ाई का सारा भार ललित पर डाल दिया। शुरू में रूप को ललित से बात करने में झिझक होती थी पर ऐसा अधिक समय तक नहीं हुआ। मैट्रिक की परीक्षा के बाद भी रूप घर नहीं गई।
आज रूप के रिज़ल्ट का दिन है। ललित रिजल्ट देखने गया था। लौटकर वह रूप को यह कहकर चिढ़ाने लगता है कि उसका तो लिस्ट में नाम ही नहीं था। रूप को रोना आने लगा तभी डॉक्टर साहब आये और उन्होंने रिजल्ट पूछा तो ललित ने तुरंत कहा कि वह फर्स्ट डिवीजन से पास हो गई है। इस तरह दोनों की नोंक-झोंक चलती रहती।
आज रूप कॉलेज में फॉर्म भरने जा रही है। ललित उसे समझा रहा है कि कौन से विषय लेने चाहिये पर वह नहीं मान रही। वह कहती है कि उसके बताए विषय कभी नहीं लेगी पर जब फ़ॉर्म भरा तो उसके बताए विषय ही भरे। ललित को पता चला तो उसे अजीब सा लगा। उसने रूप से कहा कि वह अपनी बात पर टिकी क्यों नहीं रहती। विरोध तो बड़े जोर से करती है पर करती वही है जो दूसरे चाहते हैं। ललित को उसकी यह कमज़ोरी अच्छी भी लगती थी और बुरी भी।
एक दिन रूप कमरे में अकेले बैठकर क़िताब पढ़ रही थी तभी ललित ने आकर कहा कि तैयार हो जाओ, सिनेमा देखने चलते हैं पर रूप ने साफ़ मना कर दिया। ललित झल्लाकर चला गया पर जब तैयार होकर नीचे आया तो रूप दरवाजे पर तैयार थी। वे दोनों साथ-साथ चलने लगे। रूप ने बताया कि उसके पिता का पत्र आया है और वे उसे बुला रहे हैं पर वह नहीं जाना चाहती। इस पर ललित ने कहा कि अगर नहीं जाना चाहती तो पिताजी को साफ-साफ लिख दे पर रूप अपने पिता को ऐसा जवाब नहीं लिख सकती।
इस तरह तीन साल बीत गए और वे एक-दूसरे के कितना पास आ गए इसका एहसास उन्हें तब हुआ जब ललित पढ़ने के लिए विदेश जाने लगा। उसने रूप से कहा कि तीन सालों में जो महसूस नहीं हुआ वह अब हो रहा है। वह उसके बिना नहीं रह सकता। रूप को हर हाल में उसका इंतजार करना होगा। अगर कुछ ऐसा-वैसा हो भी गया तब भी वह उसे भगा ले जाएगा।
उसके जाने पर मामी और रूप बहुत रोईं। खतों का सिलसिला चलने लगा। पर कुछ समय बाद रूप ने उसे पत्र लिखा और बताया कि उसके पिताजी ने उससे बिना पूछे उसकी शादी तय कर दी है। उसके सारे सपने टूटकर चूर-चूर हो रहे हैं पर वो ऐसा नहीं होने देगी। वह आत्महत्या कर लेगी। ललित हो सके तो यह अन्याय होने से रोक लो।
कुछ दिनों बाद रूप ने फिर ख़त लिखा- ललित तुमने पत्र लिखने में बहुत देर कर दी। तुम्हारा पत्र मिलने तक मेरी शादी हो चुकी थी। अगर यह पत्र मुझे पहले मिल जाता तो शायद इसके सहारे मैं कुछ कर पाती। मैंने लिखा था कि मैं मर जाऊंगी पर मुझसे वह भी न हो सका। शायद मेरे मन में तुमसे धोखा करने का जो पाप मैंने किया है उसका दंड पाने की इच्छा है। जब तक तुमसे दंड न मिल जाये शायद मुझे मरने का भी अधिकार नहीं है।अब मुझे भूल जाओ। इस पत्र का जवाब मत देना।
एक बार फिर रूप ने ललित को पत्र लिखा- मेरे मना करने पर भी तुम पत्र लिख रहे हो।तुम क्यों मेरा जीवन बर्बाद करने पर तुले हो? क्यों तुम्हें मेरी इतनी चिंता है? मेरे पति एक छोटे से शहर के नामी वकील हैं। साधनों का कोई अभाव नहीं है पर जब मेरा मन ही मर चुका है तो इन साधनों का क्या करूँ? अब भूलकर भी मुझे पत्र मत लिखना।
एक दिन वकील साहब ने देखा रूप बाहर शून्य की ओर ताक रही है। उसकी आंखें भी लाल हैं। उन्होंने रूप से कहा कि वह बहुत व्यस्त रहते हैं, उसे कहीं घुमाने भी नहीं ले जा पाते इसलिए उसे खुद अपना ध्यान रखना चाहिए। साथ ही उन्होंने बताया कि आज उन्हें लौटने में देर हो जाएगी और वे जाने लगे तभी वहाँ ललित आया। वकील साहब जल्दी आने की कोशिश करूंगा कहकर चले गए।
अब रूप और ललित आमने-सामने हैं। ललित ने रूप का हाल-चाल पूछा पर रूप उससे आँखे चुराती रही। बार-बार उसकी आँखों में पानी भर आता। इसी तरह कुछ दिन बीत गए। आखिर एक दिन ललित ने उससे बात की और समझाया कि वे दोनों अब भी एक साथ खुश रह सकते हैं। रूप उसे अपनी शादी, पिताजी और दुनिया वालों का डर दिखाती है पर ललित उसे अपनी भावनाओं का हवाला देकर उसके साथ चले जाने के लिए तैयार कर लेता है।एक हफ्ते तक वो उसके मन को अनेक उदाहरण देकर दृढ़ बनाता है पर उसे अब भी डर है कि रूप पीछे हट जाएगी क्योंकि वह उसकी कमजोरी जानता है। रूप उसे विश्वास दिलाती है कि ललित के रहते वह नहीं डरेगी।
दूसरे दिन ललित सबसे विदा लेकर धर्मशाला में जाकर रुकता है। रूप भी सुनहरे भविष्य के सपने संजोते हुए अपनी अटैची में कुछ कपड़े व रुपये रख लेती है। उनकी योजना रात बारह बजे स्टेशन रोड वाले चबूतरे पर मिलने की थी। रात के नौ बज रहे हैं पर वकील साहब नहीं लौटे। जैसे-जैसे समय बीत रहा है रूप के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही है। तभी वकील साहब आए। रूप ने देर की वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि आज उन्हें एक पुराना मित्र मिल गया था। वह बड़ा परेशान था क्योंकि उसकी स्त्री अपने आशिक के साथ चली गई थी। वह उनसे सलाह मांग रहा था कि अब क्या करना चाहिए? वकील साहब ने उससे कहा कि कानूनी कार्यवाही करो। पर वो कहने लगा कि वह पढ़ी-लिखी है, कानून के जोर से उसे अपना नहीं बनाया जा सकता।
यह सब सुनकर रूप कर पाँव लड़खड़ाने लगे। वकील साहब अपनी धुन में बोले ही जा रहे थे- मैंने तो साफ कह दिया पढ़ी-लिखी है तो क्या हुआ! पढ़ी-लिखी तो तुम भी हो, दो साल हो गए पर मैंने तो तुम्हें आज तक किसी पुरूष से आँख उठाकर बात करते हुए भी नहीं देखा।
रात का एक बजा है। रूप की आँखों से आँसू बह रहे हैं और अटैची से कपड़े बाहर आ रहे हैं।
चुनिन्दा पंक्तियाँ :
# क्यों नहीं मैंने साफ़-साफ़ कह दिया, क्यों मान गई मैं पिताजी की बात। पर उसके मन की बात उसके मन में ही घुटकर रह गई, उसे कोई जान भी नहीं पाया।
# नहीं साहब, ऐसा कैसे हो सकता है, रूप रानी तो पास होने का पट्टा लिखाकर आई हैं खुदा के घर से। देख रही हो चाची इसका मुग़ालता! खोपड़ी में गोबर और सपने देखेंगी फ़र्स्ट डिवीज़न के।
# आज मन बड़ा भारी-भारी हो रहा है। सोचता हूँ, तीन दिन बाद ही मैं यहाँ से चला जाऊँगा और यहाँ का सबकुछ पीछे ही छूट जाएगा।………..इन तीन सालों में तेरे साथ रहते-रहते जिस चीज़ को महसूस नहीं कर पाया, आज इस विदाई की बेला में जैसे वही पूरे वेग से मुझे मथे डाल रही है।
# बस इतना समझ लो ललित कि इतने विश्वास के साथ अपनी जिस धरोहर को मेरे पास छोड़ गए थे, मेरे देखते-देखते उसे सब लोग छीने ले रहे हैं और मैं कुछ नहीं कर पा रही हूँ! तुम तो मेरी सारी दृढ़ता, सारे साहस को लेकर मुझसे कोसों-कोसों दूर बैठे हो, अब किसका सहारा लेकर घरवालों का विरोध करूँ?
# शायद अपात्र को प्यार करने से दुख उठाना ही पड़ता है।
# जितनी उमंग और जितने उत्साह के साथ तुम्हारे प्यार को सहेजा, उसी उत्साह के साथ, मन को जरा -भी मलिन बनाए बिना मैं तुम्हारी उपेक्षा और भर्त्सना क आँचल में समेट लूँगी, इतना विश्वास रखना।