मन्नू भंडारी : मैं हार गई (भाग 2)
मन्नू भंडारी ने अपनी कहानियों में स्त्रियों के जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करते हुए स्वतन्त्र अस्तित्व को पाने की छटपटाहट, उनके लिए निर्धारित आदर्शों से न निकल पाने की विडंबना है। स्त्री मन के अंतर्द्वंद्व को पन्नों में उतारना मन्नूजी की विशेषता है।
2 : गीत का चुम्बन
कनिका एक शर्मीली प्यारी सी लड़की है जो अपनी मौसी के साथ रहती है। बचपन में ही माँ की मृत्यु हो जाने के बाद मौसी ने उसे पाला और अपने बच्चों से अधिक प्यार किया। उसे गाने का शौक़ है। मिसेज़ माथुर के यहाँ से निमंत्रण आने पर भी वह जाने को तैयार न थी पर मौसी उसे ले ही गई। इस समारोह में बड़े-बड़े कवि, साहित्यकार, चित्रकार और गायक आए हैं। पहले तो कनिका को ऐसा लगा कि इतने बड़े-बड़े लोगों के बीच वह क्या करेगी पर कुछ ही देर में सबकुछ अच्छा लगने लगा। मिसेज़ माथुर ने कई लोगों से परिचय कराया जिनमें से एक थे शहर के प्रसिद्ध कवि निखिल चौधरी।
निखिल गाने लिखता है और उसके कई गानों को कनिका ने स्वरबद्ध भी किया है। खाने-पीने का दौर खत्म होने पर माथुर साहब ने इस आयोजन का मक़सद ज़ाहिर किया। फिर कविताएँ पढ़ी गई, गीत गाए गए। मिसेज़ माथुर ने कनिका का भी परिचय देते हुए उसे गाने के लिए आमंत्रित कर दिया। कनिका ने निखिल का लिखा एक दर्द भरा गीत सुनाया जो उसे बहुत पसंद आया। उसे लगा जैसे गीत के जो भाव छूट गए थे उसे कनिका के स्वर ने पूरा कर दिया।
घर लौटने से पहले निखिल ने कनिका को विश्वास दिलाया कि वह उसके घर जरूर आएगा।
पांचवे दिन निखिल कनिका के घर में था और सबसे इतना घुल-मिल गया था जैसे बरसों की जान-पहचान हो। कनिका ने उसके कहने पर कई गीत सुनाए। निखिल ने कहा कि कनिका अच्छा गाती है उसे रेडियो पर गाना चाहिए। इस पर मौसी ने कहा कि अगर हो सकता है तो वह कोशिश करे। तब निखिल कहता है कि इसी बुधवार को वह ऑडीशन करवा देगा फिर कॉन्ट्रैक्ट अपने आप आ जाया करेगें।
तीन दिनों के रियाज़ से कनिका ने एक भजन और एक गीत तैयार कर लिया। नियत समय पर निखिल कनिका को ले गया और पन्द्रह दिन बाद से ही कॉन्ट्रैक्ट आने शुरू हो गए। तीन महीने में ही कनिका काफ़ी प्रसिद्ध हो गई और इसका सारा श्रेय निखिल को ही जाता था। कनिका ने निखिल के और भी कई गानों को स्वरबद्ध किया जिससे प्रभावित होकर निखिल ने कई नए गाने लिखे। एक-दूसरे का साथ पाकर दोनों की कला निखर रही थी और निकटता भी।
कनिका की एम.ए. की परीक्षा खत्म होने के बाद वह छुट्टियों के मूड में थी। एक दिन शाम के समय जब वह लॉन में बैठी थी तब निखिल आया। अपने कंधो पर उसके हाथों का स्पर्श पाकर वह चौंक गई थी। उसने निखिल से चार-पाँच दिनों तक ना आने का कारण पूछा। निखिल ने बताया कि कुछ मित्रों के साथ व्यस्त हो गया था। वह कनिका से जानना चाहता है कि उसने उसके दिए कितने गानों को स्वरबद्ध किया तो कनिका बताती है कि वह अभी सिर्फ उपन्यास पढ़ रही है। फिर वे दोनों सभी उपन्यासों की विषय-वस्तु की चर्चा करते हुए स्त्री-पुरूष सम्बन्धों पर पहुंच गए। निखिल की दृष्टि में सभी प्रकार के सम्बन्ध जायज थे जबकि कनिका के लिए ऐसी बातें कोरे सिद्धांत जिन्हें व्यवहार में लाना बड़ा कठिन होता है।
निखिल के जाने के बाद भी वह उन्हीं बातों पर विचार करती रही। यह बात उसके दिमाग में बसती जा रही थी कि जो चीजें बार-बार होती हैं हमें उनकी आदत पड़ जाती है और नैतिक भी लगने लगती हैं। पहली बार निखिल के हाथ पकड़ने पर उसे अजीब सा लगा था पर अब गले में बाहें डाल दे तब भी बुरा नहीं लगता।वैसे उसे निखिल पर पूरा विश्वास था कि वह कभी ऐसी कोई हरकत नहीं कर सकता जो उसे गवारा न हो।
निखिल ने कनिका को एक दर्दभरा गीत स्वरबद्ध करने को दिया था जिसे कनिका ने तीन दिनों के प्रयास के बाद स्वरबद्ध कर लिया था और अब वह निखिल का बेसब्री से इंतजार कर रही थी कि कब वह आए और वह उसे गीत सुनाए। शाम को निखिल के आते ही जोरों की बारिश शुरू हो गई थी। कनिका ने सारे खिड़की-दरवाजे बंद कर दिए ताकि गाते समय ध्यान ना भटके। बड़े दिल से उसने गीत गाया सारे भावों के साथ। उसकी आँखें भी बंद थीं। निखिल मंत्रमुग्ध सा गीत सुन रहा था उसे गीत सुनकर ऐसा लग रहा था जैसे वह पागल हो गया है उसका खुद पर काबू न रहा। गीत के खत्म हो जाने के बाद भी वे दोनों वैसे ही बैठे रहे। कुछ क्षणों बाद अचानक ही उसने कनिका को बाहों में लेकर चूम लिया। एक झटके में ही कनिका को होश आ गया और वह दूर चली गई। वह गुस्से में काँप रही थी। उसे बदतमीज कहते हुए चांटा मार दिया। उसने निखिल से ऐसी हरकत की उम्मीद नहीं की थी। निखिल ने इसे छोटी सी बात कहकर टालना चाहा पर कनिका का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। निखिल बरसते पानी में लौट गया।
दूसरे दिन कनिका का गुस्सा तो कम हो गया था पर मन की वेदना कम न हुई। शाम होने पर वह निखिल का इंतजार करने लगी। वह सोच रही थी कि उससे कहेगी जो हुआ सो हुआ पर आगे से ऐसा नहीं होना चाहिये पर निखिल नहीं आया, दूसरे दिन भी नहीं। वह बेचैन होने लगी।अब उसे खुद पर गुस्सा आने लगा। सोचने लगी कि निखिल ने भी तो सही किया। उसने अगर कोई हरकत कर भी दी थी तो मैनें भी बदतमीजी की थी। वह उससे माफ़ी मांगकर मना लेगी।
उसे निखिल के सारे एहसान भी याद आने लगे जिसकी वजह से उसे प्रसिध्दि मिली थी।
दूसरे दिन निखिल आया पर उसका व्यवहार पूरी तरह बदला हुआ था। कनिका ने उसे समझाने की कोशिश की कि वह नाराज़ नहीं है। निखिल ने उसे बताया कि वह मद्रास जा रहा है। कनिका ने बहुत चाहा कि उसे कैसे भी मना ले पर वह चला गया। कनिका को ऐसा लगा मानो उसका सबकुछ छीन गया। वह फूट-फूट कर रोने लगी। उसे दुख इस बात का था कि यह बात अच्छी तरह जानते हुए भी कि व्यवहार में आने पर किसी चीज़ की चेतना लुप्त हो जाती है निखिल उससे नाराज़ हो गया।
एक हफ्ते बाद उसे निखिल का पत्र मिला जिसमें लिखा था कि वह अपने उस दिन के व्यवहार से बहुत शर्मिंदा है। आज तक वह जितनी भी लड़कियों से मिला सभी उसकी ऐसी हरकतों से ख़ुश होती थीं। उसे अफसोस है कि उसने कनिका को भी वैसा ही समझा पर उसने अपने व्यवहार से बता दिया कि वह उन सबसे अलग है। लड़के-लड़की की मित्रता का आधार शारीरिक संबंध से अलग भी हो सकता है। उसे पश्चाताप हो रहा है और हो सके तो कनिका उसे माफ कर दे।
पत्र पढ़कर कनिका की आँखों में आँसू आ गए और गुस्से में उसने पत्र के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और तकिये में मुँह छिपाकर सिसकने लगी।
चुनिन्दा पंक्तियाँ :
# कोई बात पहले चर्चा का विषय ही तो बनेगी, हम विवाद कर-करके जब उसको पचा लेंगे तभी तो व्यवहार में ला सकेंगे। हर बात व्यावहारिक रूप लेने से पहले तो महज़ चर्चा का विषय रहेगी ही।
# बहुत विभोर होकर उसने वह गीत गाया, जैसे अपने प्राणों का समूचा दर्द, सारी व्यथा, सारी कसक उसमें उड़ेलकर रख दी हो।
# बार-बार अपने होठों पर, जिन पर कभी किसी के गर्म श्वास तक का स्पर्श नहीं हुआ था, एक अजीब प्रकार की जलन-सी महसूस होती और वह ज़ोर से अपने होंठ काट लेती