भीष्म साहनी : हानूश (भाग 1) | हानूश नाटक

भीष्म साहनी हानूश (भाग 1) DREAMING WHEELS

भीष्म साहनी : हानूश (भाग 1) | DREAMING WHEELS

भीष्म साहनी का जन्म 8 अगस्त 1915 को रावलपिंडी, पाकिस्तान में हुआ था। इन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. फिर पीएचडी की। पहले शिक्षक, व्यापारी, समाचार पत्रों में लेखन फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के ज़ाकिर हुसैन दिल्ली महाविद्यालय में साहित्य के प्रोफेसर बने। इस बीच सात वर्षों तक ‘ विदेशी भाषा प्रकाशन गृह ‘ , मास्को में अनुवादक का कार्य भी किया । यहाँ रहते हुए रूसी भाषा का गहन अध्ययन व लगभग दो दर्जन रूसी किताबों का हिंदी में अनुवाद किया। ‘नई कहानियाँ ‘ पत्रिका का सौजन्य-सम्पादन भी किया। साथ ही प्रगतिशील लेखक संघ तथा अफ्रो-एशियाई लेखक संघ से भी जुड़े रहे। इन्हें आधुनिक हिंदी साहित्य का अग्रणी लेखक माना जाता है।
उन्होंने अनेक उपन्यास, कहानियाँ, नाटक , आत्मकथा और  बालकथायें लिखी हैं।

भीष्म साहनी : हानूश (भाग 1) | DREAMING WHEELS

साहनी जी को अनेक पुरस्कारों से भी विभूषित किया गया जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार, लोटस अवार्ड, सोवियत  लैंड नेहरू अवार्ड व पद्मभूषण महत्वपूर्ण हैं।

मैंने उनकी ‘ मेरी प्रिय कहानियाँ ‘ पढ़ी। इसमें सभी कहानियाँ लोगों की भावनाओं के विभिन्न आयामों का विश्लेषण है। ‘ चीफ की दावत ‘, ‘माता-विमाता ‘ और‘ अमृतसर आ गया है ‘ दिल में घर कर जाती है और दिमाग को शून्य।

‘ मेरी प्रिय कहानियाँ ‘ पढ़ने के बाद जब मुझे इनकी किताब ‘हानूश’ मिली तो मैं इसे पढ़ने से खुद को रोक नहीं पाई। ‘ हानूश ‘ इनका प्रथम नाटक है जिसका कथानक चेकोस्लोवाकिया की राजधानी प्राग में घूमते हुए मित्र निर्मल वर्मा द्वारा दिखाई गई पहली मीनार घड़ी से जुड़ी प्रचलित लोककथा से लिया गया है। साहनी जी ने इसे नाटक का रूप देकर पहली बार दिल्ली के दर्शकों के सामने प्रथम राष्ट्रीय नाटक समारोह में 18-19 फरवरी, 1977 को पेश किया था।

यह नाटक तीन अंकों के साथ काफी सरल भाषा में लिखा गया है जिसमें एक भी अनावश्यक शब्द का प्रयोग नहीं जान पड़ता। यह नाटक एक ओर कलाकार की सृजनात्मकता , धैर्य व निरीहता को उजागर करता है वहीं दूसरी ओर धर्म एवं सत्ता के गठबंधन के साथ सामाजिक शक्तियों के संघर्ष को अभिव्यक्त करता है। हानूश के साथ जो हुआ वो हर कालखंड का कड़वा सच है। मैं यहाँ इस नाटक का सारांश कहानी के रूप में प्रस्तुत कर रही हूँ।

यह कहानी है मध्ययुगीन यूरोप के परिवार की जिसका मुखिया है एक कुल्फसाज़ (ताले बनाने वाला ) हानूश, उसकी पत्नी कात्या व उनकी बेटी यान्का। अन्य मुख्य पात्रों में हैं हानूश का पादरी भाई, एमिल और जेकब।

हानूश पिछले  तेरह सालों से एक घड़ी बनाने की कोशिश कर रहा है जो अपने आप चलती रहे साथ ही हर घंटे पेंडुलम की आवाज भी पूरे शहर में सुनाई दे। पहले वह केवल ताले ही बनाता था पर जबसे उसे घड़ी बनाने का विचार आया उसने ताले बनाना कम कर दिया और अब तो हर समय उस पर घड़ी बनाने की धुन सवार रहती है। कात्या उसके बनाए ताले शहर में घूम-घूमकर  बेचती है और अपने परिवार का भरण-पोषण करती है।

भीष्म साहनी : हानूश

आज हानूश का पादरी भाई आया है। कात्या उसे कहती है कि उसने पहले कुछ नहीं कहा पर अब वह इस प्रकार घर नहीं चला सकती। पहले हानूश दस-बारह ताले बना देता था जिसे बेचकर घर का गुजारा हो जाता था पर अब उस पर सिर्फ घड़ी बनाने की धुन सवार रहती है। उसे अपने परिवार का ख्याल ही नहीं है। हानूश के इसी व्यवहार के कारण उनका बेटा ठंड में मर गया।उसके पास घर को गर्म रखने लायक ईंधन तक नहीं था। कात्या अपने लिए कपड़े या जेवर नहीं चाहती पर अपने बच्चों को ठंड में ठिठुरते कैसे देख सकती है।

पादरी कहता है कि अगर हानूश घड़ी बनाने में कामयाब हो गया तो राजा उसे मालामाल कर देंगे और अपना दरबारी भी बना लेंगे इसलिए तुम्हें अपने पति का हौसला बढ़ाना चाहिए। कात्या इस बात से सहमत नहीं है क्योंकि उसे लगता है कि जब घड़ी तेरह सालों में नहीं बनी तो अब कैसे बन जाएगी। हानूश बेकार ही समय व पैसे नष्ट कर रहा है।

पादरी कात्या को बताते है कि गिरजे के अधिकारियों ने हानूश को मिलने वाली माली इमदाद को बंद कर दिया है।इस पर कात्या कहती है कि जिस काम का कोई फल ना मिल रहा हो आखिर उस पर कोई क्यों पैसे लगाएगा ?

वहीं यान्का आती है और अपनी माँ से कहती है कि बापू का काम तो अच्छा चल रहा है वे जरूर घड़ी बना लेंगे। आप उन्हें मत रोको।कॉलेज के प्रोफेसर ने भी उनके काम की तारीफ की है। उनकी घड़ी जल्दी ही पूरी हो जाएगी। पर कात्या को यकीन नहीं है। उसे लगता है कि जब तक घड़ी बनेगी वे दूसरे जहान में पहुँच चुके होंगे।

चुनिंदा पंक्तियाँ :

# सियाने कह गए हैं  : पीठ अतीत की ओर और मुँह भविष्य की ओर होना चाहिए।
सियाने यह भी कह गए हैं कि जो अतीत से सबक हासिल नहीं करता , वह वर्तमान में भी अंधा और भविष्य में भी अंधा बना रहता है।

# पैसे वाले कौन सा सुखी हैं, कात्या ? अगर पैसे से सुख मिलता होता तो राजा-महाराजों जैसा सुखी ही दुनिया में कोई नहीं हो।

क्या हानूश ने घड़ी बना ली और अगर बना ली तो राजा ने उसे मालामाल कर अपना दरबारी बनाया या नहीं ये देखेंगे हम अगले भाग में। जरूर पढें भाग 2।

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