शिवानी – मेरी प्रिय कहानियाँ : पुस्तक समीक्षा
लेखक : शिवानी
प्रकाशक : राजपाल एंड सन्ज
विधा : कहानी
शिवानी हिंदी साहित्य का एक जाना-माना नाम है। ये प्रसिद्ध कहानीकार और उपन्यासकार हैं जिन्होंने कहानी को हिंदी साहित्य की एक प्रमुख विधा के रूप में पहचान दिलवाई और पाठकों के बीच लोकप्रिय बनाया। इनका वास्तविक नाम गौरा पन्त था परन्तु इन्होंने लेखन शिवानी नाम से किया।
इनका जन्म 17 अक्टूबर 1923 को राजकोट, गुजरात में हुआ था पर इनका बचपन और बाद के कुछ वर्ष अल्मोड़ा में बीते। कुमायूँ से इन्हें हमेशा विशेष लगाव रहा। इनकी रचनाओं में भी यह प्रेम और लगाव साफ दिखाई देता है। कुमायूँ के सूर्योदय एवम सूर्यास्त के बिना इनकी रचनाएँ अधूरी हैं। कुमायूँ के ही पहाड़ों पर चलने वाली इनकी नायिकाओं का पदविन्यास देखने वाले का मन हर लेते हैं।इनकी शिक्षा शांति निकेतन में हुई। ये हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, उर्दू और गुजराती भाषाओं की ज्ञाता थीं। इन्होंने संस्कृत निष्ठ हिंदी भाषा में रचनाएँ की है। इनकी भाषा -शैली दूसरे साहित्यकारों से बहुत अलग है। इनकी भाषा सामान्य पाठकों को चुनौती देती है और विशेष के कानों में रस घोलती है। इनके शब्दों का चयन आपके सामने किसी चित्र की तरह प्रस्तुत होता है जिससे आँखें हटाना कठिन है। मेरे लिए इनकी लिखी हरएक पंक्ति कविता के समान है जो रसों और अलंकारों से सुसज्जित है।
शिवानी जी ने उपन्यासों और कहानियों के साथ संस्मरण, यात्रा-वृत्तांत और आत्मकथा भी लिखी है। इनकी रचनाएँ कृष्णकली, भैरवी, विषकन्या, चौदह फेरे, और आमदेर शांतिनिकेतन बहुत प्रसिद्ध हुए। इनका कहानी संग्रह ‘ मेरी प्रिय कहानियाँ ‘ इनकी पसंद की चुनिंदा कहानियों में से आठ कहानियों का संग्रह है- भूमिका सहित। ये भूमिका मेरे लिए तो वह बोनस है जो कर्मचारी को साल में केवल एकबार दीपावली में मिलता है लेकिन पूरे साल के वेतन से अधिक प्रिय होता है। यह भूमिका हमें शिवानी जी के मन की गहराई में लेकर जाती है।
इसमें ‘करिए छिमा’ , ‘ पुष्पहार ‘ , ‘ के ‘ , ‘चिलगाड़ी ‘ , ‘ सती ‘ , ‘ ज्येष्ठा ‘ , ‘ शपथ ‘ और ‘ अपराधी कौन ‘ नामक कहानियां संग्रहित हैं। ज्यादातर कहानियां नायिका प्रधान हैं। इन कहानियों में आपको हर तरह की स्त्रियां देखने को मिलेंगी। नायिकाओं का चरित्र-चित्रण दर्शनीय एवम मार्मिक है। करिए छिमा की हीरावती पतिता होते हुए भी एक आदर्श प्रेमिका के रूप में स्थापित होती है। उसके आगे कुशल राजनीतिज्ञ नायक बहुत कमतर दिखाई देता है। दूसरी तरफ ‘पुष्पहार’ की दुर्गी और ‘ के ‘ की कमला स्त्री की एक अलग छवि प्रस्तुत करती है। एक ओर ‘ चिलगाड़ी ‘ का अंत हमें भावुक कर जाता है तो दूसरी तरफ ‘ सती ‘, ‘ शपथ ‘ और ‘ अपराधी कौन ‘ हमें हँसने पर मजबूर कर देते हैं। इनकी विषयवस्तु संवेदना की गहराई में जाकर समाज के सत्य को उजागर करती है। ‘ पुष्पहार ‘ इसका बहुत अच्छा उदाहरण है।
कमला का अपनी शादी को बचाने के लिए उठाया गया कदम, मदालसा के सती होने का ढोंग, पिरी का प्रेम के लिए हठ, शुभ्रा का मजाक जो उसके ही गले की फांस बन गया और मीना-अमला के रूप में ननद-भाभी की नोंक-झोंक को शिवानी जी ने बड़े ही सुंदर ढंग से मोतियों की लड़ी से चुने गए शब्दों से सजाया है।
मुझे ‘करिये छिमा ‘ कहानी सबसे ज्यादा अच्छी लगी। यह दिल को गहराइयों में उतर कर सोच पर हावी हो जाती है। नायिका हीरावती कुमायूँ की अपरूप सुंदरी होने के साथ आत्मनिर्भर और स्वतंत्र विचारों की अनुगामिनी है। दूसरी तरफ नायक श्रीधर सुशिक्षित, संस्कारी होने के साथ-साथ राजनीति का भी कुशल खिलाड़ी है। वह हीरावती को अच्छी तरह जानता है फिर भी उसकी ओर आकर्षित हो जाता है।
परिस्थितियां दोनों को मिलवा भी देती है परंतु श्रीधर का विवेक पुनः जाग जाता है। पर हीरावती को उससे कोई शिकायत नहीं है। श्रीधर को बदनामी से बचाने के लिए वह अपने नवजात शिशु को अलकनन्दा में बहा देती है। अदालत में उसका दिया गया बयान ( नीचे चुनिंदा पंक्तियाँ में आप पढ़ सकते हैं ) उसकी हाजिरजवाबी की बेहतरीन मिसाल है। पच्चीस वर्षों बाद सत्य का पता चलने पर श्रीधर का पश्चाताप भी हृदयस्पर्शी है।
शिवानी जी ने अपनी रचनाओं में नारी जीवन से जुड़े हर पहलू को महत्व दिया इस कारण ही हिंदी की महिला कथाकारों में इनका विशिष्ट स्थान है। अगर आपकी महिला प्रधान कहानियों में रुचि है, अच्छी कहानियों के प्रशंसक हैं तो ये पुस्तक आपका मनोरंजन जरूर करेगी। जरूर पढ़ें – ‘ शिवानी की लोकप्रिय कहानियां ‘।