अक्षत गुप्ता : द हिडन हिंदू 2 सारांश (भाग 1)
अक्षत गुप्ता जी की द हिडन हिंदू श्रृंखला की यह दूसरी पुस्तक है। पहली पुस्तक की तरह ही रहस्य और रोमांच से भरपूर। जहाँ इस बार कुछ रहस्यों से पर्दा उठता है वहीं दूसरी ओर कई नए रहस्य दिमाग को उलझा देते हैं। अक्षत जी की कल्पना की उड़ान सोच से परे तो है पर कहीं-कहीं यह कल्पना हमें ऐसे स्थानों पर भी ले जाती है जहाँ जाना हर भारतीय का सपना है-मानसरोवर झील। अक्षत जी ने कैलाश पर्वत, ज्ञानगंज आदि जितने भी स्थानों का वर्णन किया है, उसे पढ़कर ऐसा लगता है जैसे आप भी वहीं पहुँच गए हैं। अक्षत जी का नई तकनीक के साथ हमारी धार्मिक मान्यताओं का सम्मिश्रण देखते ही बनता है।
पहली पुस्तक के अंत में हमने देखा कि पृथ्वी मिसेज बत्रा से कहता है कि ओम शास्त्री उसके पिता हैं। अब दूसरी पुस्तक में हम देखेंगे कि परशुराम और अश्वत्थामा ओम को कहां ले गए, नागेंद्र अब क्या करने वाला है और परिमल व एल. एस. डी. कौन हैं जो नागेंद्र के इशारों पर नाचते हैं।
विलुप्त प्राणियों का नगर
मिसेज बत्रा पृथ्वी की पहचान सुनकर संशय की स्थिति में हैं। वह दोंनो के लिए सूप बनाने चली जाती हैं और पृथ्वी उनके घर का जायज़ा लेने लगता है। उसे पता चलता है कि मिस्टर और मिसेज बत्रा के बच्चे नहीं हैं। वापस आने पर मिसेज बत्रा पृथ्वी से शुरू से सबकुछ बताने के लिए कहती हैं। तब पृथ्वी उन्हें बताना शुरू करता है।
समुद्रतल से 21,780 फीट ऊपर ओम एक अनजान जगह पर बेहोश लेटा हुआ है। जब उसे होश आता है तो वह देखता है कि उसके चारों ओर वृद्ध पुरूष हैं जो एक जैसे भूरे ऊनी वस्त्र पहने हुए हैं। उसने दर्पण में देखा कि उसके भी लंबे बाल और जटाएं हटा दी गई हैं। बाहर बर्फ़बारी हो रही है। उसे वह समय याद आने लगा जब वह धन्वंतरि और सुश्रुत से मिला था। वह सभी से पूछने लगता है कि वह कहां है? तब वहाँ अश्वत्थामा आते हैं। सभी उन्हें प्रणाम करते हैं। वे ओम का घाव देखने आगे आते हैं पर घाव ओम के शरीर से गायब हो चुका था। वे ओम को बताते हैं कि ये स्थान उस स्थान के पास ही है जहाँ उसे पुनर्जीवित किया गया था। यह सुनकर ओम काँप जाता है क्योंकि उसने हजारों सालों तक उस जगह की खोज की थी।
अश्वत्थामा उसे बताते हैं कि वे सभी इस समय ब्रह्मांड के केंद्र अर्थात कैलाश पर्वत पर हैं। इस पर कोई भी सफलता पूर्वक चढ़ाई नहीं कर पाता क्योंकि यह रहस्यमय तरीके से दिशाओं को बदल देता है। तब ओम भी कैलाश पर्वत के बारे में बहुत सी बातें कहता है। अश्वत्थामा उसे कहते हैं कि आज तक उसने जितनी दंत कथाएँ सुनी हैं वह सभी सत्य हैं और इस जगह का नाम ज्ञानगंज है। यह अदृश्य रहस्यमय हमेशा रहने वाले प्राणियों का राज्य है। किसी के कर्म ही उसे ज्ञानगंज तक पहुंचा सकते हैं।
ओम अश्वत्थामा से पूछता है कि अबतक वह इस जगह को क्यों नहीं खोज पाया। तब वे बताते हैं कि यह नगर एक आध्यात्मिक छल से ढका है जिसकी वास्तविकता दूसरी जगह है जिससे यह उपग्रहों तक से छिपा हुआ है। वे दोनों कुटिया से निकलकर आगे जाते हैं। आगे जाकर चट्टान से नीचे ओम को एक झील दिखाई देती है। अश्वत्थामा बताते हैं कि यह मानसरोवर झील है जिसक निर्माण ब्रह्मा जी की कल्पना में हुआ था। आगे चलते हुए वे एक गुफा तक पहुंच जाते हैं।
गुफा में प्राकृतिक रुप से ही उजाला था जिससे उन्हें रास्ता साफ दिख रहा था। पूरे रास्ते ओम को ऐसे दृश्य दिखाई देते हैं जिनकी उसने केवल कल्पना की थी। सारा वातावरण ही दिव्य शक्तियों सहित था। गुफा के दूसरी तरफ निकल आने पर एक स्थान पर जहाँ चट्टान का मंच बना हुआ था, रुककर अश्वत्थामा प्रार्थना करने लगते हैं जो भगवान शिव के निवास स्थान जैसा प्रतीत होता है। ओम वहाँ कई विलुप्त प्राणियों को भी देखता है जैसे विशाल पक्षी डोडो जिसे 1662 के बाद नहीं देखा गया था, डोडो का पीछा करते हुए 1852 में आखरी बार दिखाई दिया पक्षी ‘ग्रेट औक’, 17वीं शताब्दी के अंत तक देखी गई ‘स्टेलर सी काउ’, सफेद डॉल्फिन ‘बाईजी’ साथ ही विलुप्त पौधे और झाड़ियाँ भी।
इसी बीच उसका सामना होता है सेबर-टूथ टाइगर से। वह ओम पर हमला कर देता है पर एक बड़ा सा वानर आकर ओम को बचा लेता है। ओम देखता है कि उसका शरीर मनुष्य का और सिर व पूँछ वानर की थी। तभी वहाँ अश्वत्थामा आ जाते हैं। तब ओम उनसे विलुप्त प्राणियों के विषय में पूछता है। वे बताते हैं कि सभी में से एक प्राणी यहाँ संरक्षित है। जब कलयुग समाप्त होगा तो ये सभी फिर से सतयुग का आरम्भ करेंगे।
अब तीनों उसी मार्ग पर वापस जाने लगते हैं जहाँ से वे आए थे। अश्वत्थामा उस वानर का परिचय देते हुए कहते हैं कि यह वृषकपि है जो अपने कुल का अंतिम सदस्य है और इस क्षेत्र का संरक्षक भी है। तब ओम अपनी रक्षा करने के लिए वृषकपि का धन्यवाद करते हैं। कुछ दूरी तक उन्हें छोड़ने के बाद वृषकपि वापस लौट जाते हैं। अब ओम और अश्वत्थामा फिर उसी पत्थर के मंच तक पहुँचते हैं तब ओम अश्वत्थामा से प्रश्न करता है कि उन्हें उसके पहले घर यानी हिमालय में निवास का पता कैसे चला? तब वे उसे बताते हैं कि उन्हें ओम के बारे में तब तक नहीं पता था जब तक वे उससे नहीं मिले थे जो ओम के बारे में सबकुछ जानता था।
इधर समुद्र-तल से 25,938 फीट नीचे नागेंद्र मृत संजीवनी की दोनों पुस्तकों को देख रहा था। उसे अमरता का रहस्य प्राप्त हो गया था पर अभी भी केवल एक तत्व की कमी थी और वह था ओम के रक्त का नमूना। उसने जोर से ठहाका लगाते हुए पुस्तकों को बंद कर दिया। उसे देखकर परिमल और एल.एस.डी. भी चौंक गए और सोचने लगे कि आगे क्या होने वाला है?
चुनिंदा पंक्तियाँ :
# कैलाश पर्वत! भगवान शिव का निवास, ब्रह्मांड का केंद्र, प्रदेश की नाभि, विश्व का स्तम्भ, स्वास्तिक पर्वत, तिब्बती में ‘बर्फ का कीमती रत्न’ – ये समस्त नाम विश्व के सबसे अप्रकट और पवित्र पहाड़ों में से एक है- कैलाश पर्वत।
# इसे धुरी मुंडी माना जाता है- शाब्दिक रूप में कहें तो विश्व की ‘धुरी’, जो पृथ्वी, स्वर्ग और नरक के बीच सम्बन्ध प्रदान करती है।
# ओम ऐसी शक्तियों के बीच उपस्थित था, जो उससे भी बलशाली थीं और जो निर्माण, विनाश और परिवर्तन की डोर प्रदान करते हुए संयुक्त रूप से ब्रह्मांड को जोड़ रही थीं। ये प्रभावशाली ऊर्जा की लहरें जैसे उसे ढक रही थीं और उसके कण-कण को स्पर्श करते हुए पूरे ज्ञानगंज को उज्जवलित कर रही थी।
# उसकी चाल देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे उसकी बड़ी और काली रेखाओं से गड़ी हुई चोंच उसके मस्तिष्क पर भार डाल रही हो। उसकी आँखों पर बनी हुई एक सफेद पट्टी से वह नेत्रहीन जान पड़ता था, परन्तु ध्यान से देखने पर दिखाई देता था कि काले मोतियों के समान झिलमिलाती उसकी दो आँखें भी थीं।
# क्षण भर के लिए ऐसा लगा, जैसे वह दो अलग-अलग समय क्षेत्र थे, जैसे थोड़ी सी ही दूरी समय की धारणा में इतना बड़ा अंतर बनाने में सफल रही हो! ऐसा प्रतीत हुआ, मानो ओम और अश्वत्थामा के बीच एक पारदर्शी दीवार थी, जो सूर्य और चंद्रमा, दिन और रात, वास्तविकता और स्वप्न के प्रदेशों का सीमांकन कर रही थी।
अगले भाग में हम देखेंगे कि एक तरफ तो ओम नित नए आश्चर्यों से गुजर रहा है, नए लोगों से मिल रहा है, वहीं दूसरी तरफ नागेंद्र के साथ दे रहे परिमल व एल.एस. डी. स्वयं शंका में हैं और नहीं जानते कि नागेंद्र का अगला कदम क्या होगा परन्तु फिर भी प्रत्येक स्थिति में उसकी हर आज्ञा मानने को तैयार हैं।