शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय : हरिलक्ष्मी | हरिलक्ष्मी सारांश

शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय : हरिलक्ष्मी | DREAMING WHEELS

शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय : हरिलक्ष्मी | DREAMING WHEELS

हिंदी साहित्य के चार स्तम्भों से तो सभी परिचित हैं। यदि बांग्ला साहित्य की बात की जाए तो रबीन्द्रनाथ टैगोर के बाद शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय के नाम की चर्चा होनी ही चाहिए। यदि किसी व्यक्ति की रुचि साहित्य में नहीं है फिर भी वह इस नाम से परिचित होगा क्योंकि उनकी ‘बड़ी दीदी’, ‘परिणीता’, ‘देवदास’ और ‘चरित्रहीन’ जैसी रचनाओं पर फिल्में भी बनाई गई जिन्होंने प्रत्येक भारतीय के दिल में जगह बनाई।

शरत जी का जन्म 15 सितम्बर 1876 को हुगली जिले के देवानंदपुर में हुआ था परंतु पारिवारिक परिस्थितियों के कारण उनका बचपन व किशोरावस्था नाना के घर पर गुजरा। बहुत छोटी उम्र से ही उन्होंने लिखना शुरू कर दिया था। बहुत छोटी उम्र से लेखन के बाद भी पूरी तरह लेखक बनने के बीच में अठारह वर्षों का अंतराल रहा जिसमें उन्होंने कई यात्राएं और कार्य किये। उनके लेखन में उनके बचपन के सहचरों का साथ, आसपास व्याप्त जातिगत भेदभाव, स्त्रियों की समाज में स्थिति और निर्बल पर सबल द्वारा किया जा रहा शोषण व्यापक रूप से दिखाई देता है। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया। उनके काम की प्रशंसा करने वाले केवल भारत में ही नहीं हैं बल्कि विदेशी भी उनकी लेखनी का उतना ही सम्मान करते हैं।

शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय

शरत जी द्वारा रचित उपन्यास, नाटक और कहानियों का अन्य भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है। यहाँ मैं उनकी कुछ कहानियों के संग्रह जो ‘अनमोल कहानियाँ’ नाम से प्रकाशित है का वर्णन कर रही हूँ।

यह पुस्तक बहुत ही सुंदर कहानियों का संग्रह है, जिसमें सभी कहानियाँ उस समय के परिवेश का भली-भांति चित्रण तो प्रस्तुत करती ही हैं साथ ही पात्रों की मनोदशा यह बात स्वयंसिध्द कर देती है कि समय के साथ सबकुछ बदल सकता है परन्तु मनुष्य स्वभाव नहीं।

कहानी ‘हरिलक्ष्मी’ मेरी पसंदीदा कहानियों में से एक है। इसका शीर्षक ही इस कहानी की मुख्य पात्र है। हरिलक्ष्मी एक ऐसी पढ़ी-लिखी, सुंदर, समझदार और गुणी लड़की है जिसका विवाह उससे दुगने से ज्यादा उम्र के व्यक्ति से कर दिया जाता है। उसे एक बड़ा सा परिवार, ठाठ-बाट, गहने और प्रेम करने वाले पति के साथ ही मिलती है मंझली बहू। शरत जी ने हरिलक्ष्मी के माध्यम से स्त्री मन की भावनाओं का सुंदर चित्रण किया है चाहे वह प्रेमभाव हो, ईर्ष्या हो, ग्लानि हो, अभिमान हो या स्वाभिमान। हरिलक्ष्मी, मंझली बहू के स्वाभिमान को कुचलने के लिए अपने पति से ऐसी बातें बोल जाती है जिसका परिणाम विपिन की मृत्यु के रूप में सामने आता है और इस अपराध की ग्लानि के साथ जीना हरिलक्ष्मी के लिए मुश्किल हो जाता है।

कहानी शुरू होती है बेलपुर तालुका के दो जाति-भाइयों शिवचरण और विपिन से। दोनों छ्ह-सात पीढ़ी पहले एक ही मकान में रहते थे, किन्तु आज शिवचरण तीन मंजिला मकान में रहता है और विपिन पास ही टूटे-फूटे मकान में।

चालीस साल से अधिक के शिवचरण की पहली पत्नी की मृत्यु हो जाने पर वे आधी से भी कम उम्र की हरिलक्ष्मी को ब्याह कर ले आये। देखने में सुंदर और मैट्रिक पास हरिलक्ष्मी का मन घर में किसी से नहीं मिल पाया। शिवचरण उसका आवश्यकता से अधिक ध्यान रखते। घर के लोग, नौकर – चाकर सभी उसकी सेवा में हाजिर रहते। अकसर उसे सुनने मिलता कि अब तो मंझली बहू के मुँह पर कालिख लग गई । रूप, गुण, बुद्धि सबमें उसका घमण्ड चूर हो गया। हरिलक्ष्मी अब तक उससे मिल नहीं पाई थी।

इतनी सुविधाओं और आराम के बाद भी दो माह में ही हरिलक्ष्मी बीमार पड़ गई। एक दिन मंझली बहू अपने छह-सात साल के बेटे के साथ उसे देखने आई। मंझली बहू विपिन की पत्नी थी। उसके कपड़ों और शरीर से ही दरिद्रता झलक रही थी। लक्ष्मी ने उसे अपने बिस्तर पर बैठने को जगह दी और प्यार से कहने लगी कि सौभाग्य से बुखार हो गया तो आपसे मुलाकात हो गई। तब मंझली बहु उसे ‘आप’ कहने से रोकती है तब लक्ष्मी भी उसे स्वयं को जीजी कहने से मना कर देती है।

हरिलक्ष्मी को मंझली बहु हर तरह से खुद से कमतर लगी केवल उसकी आवाज़ के जो सुनने में शहद से भरा संगीत जैसा लगता। शाम को यह बात हरिलक्ष्मी ने अपने पति को बताई। शिवचरण अपने आगे विपिन को कुछ नहीं समझता था। वह विपिन और हरिलक्ष्मी के बारे में असभ्य बातें करने लगा जिसे सुनकर हरिलक्ष्मी को लज्जा आने लगी।

दूसरे दिन मंझली बहु फिर से हरिलक्ष्मी को देखने आती है। इसबार लक्ष्मी बातों-बातों में अपने मायके, पढ़ाई सबकुछ उसे बताती है जिसे मंझली बहु बड़े आराम से सुनती है इससे लक्ष्मी के मन को बड़ी तृप्ति का अनुभव होता है। जाते हुए मंझली बहु लक्ष्मी से कहती है कि वह देहात की है। उसने कल बिना सोचे कुछ कह दिया पर वो अपमान करने के लिए नहीं था तब लक्ष्मी कहती है कि तुमने तो ऐसा कुछ नहीं कहा था। फिर मंझली बहु चली जाती है। रात में शिवचरण उसे बताते हैं कि कल मंझली बहु द्वारा तुम्हारा अपमान करने और घमंड दिखाने के कारण उन्होंने आज सुबह विपिन को बुलाकर बहुत झाड़ा। हरिलक्ष्मी यह सुनकर सन्न रह जाती है। शिवचरण विपिन और मंझली बहु के लिए अनेक अपशब्दों का भी प्रयोग करता है जिसे सुनकर उसे लगता है कि धरती फट जाए और वो इसमें समा जाए।

हरिलक्ष्मी का स्वास्थ्य बेलापुर में ठीक न हो सका तो डॉक्टर ने उसे हवा-पानी बदलने की सलाह दी। उसका काशी जाना तय हो गया। पूरा गाँव उसे विदा करने आया केवल विपिन और मंझली बहु को छोड़कर। बुआ और अन्य स्त्रियां उनके बारे में भला -बुरा कहने लगीं पर लक्ष्मी ने कुछ नहीं कहा। मंझली बहु के लिए उसे बुरा भी लगता है पर अभिमान भी आड़े आता है। चार माह में वह ठीक होकर लौट आती है।

लौटने के बाद वह खुद मंझली बहु से मिलने उसके घर जाती है और उसे देखने ना आने की शिकायत भी करती है। विपिन अपने परिवार के साथ एक टूटे-फूटे मकान में रहता है जो बड़ा ही साफ-सुथरा है और पूरे घर में मंझली बहु के हाथ से ऊन व सूत की बनी चीजें हैं। हरिलक्ष्मी मंझली बहु को अपना गुरु बना लेती है और रोज उससे शिल्पकला सीखने आने लगती है। दस-पन्द्रह दिनों में ही वह जान जाती है कि यह कठिन है। मंझली बहु उससे कहती है कि यह कठिन है। इसे सीखने में समय लगता है। इससे हरिलक्ष्मी को क्रोध आ जाता है। वह स्वयं भी जानती है कि मंझली बहु उससे अधिक गुणी है। इसी प्रकार एक दिन हरिलक्ष्मी विपिन के बेटे निखिल को सोने की चेन पहनाती है परंतु मंझली बहु वह लेने से इंकार कर देती है। इसे हरिलक्ष्मी अपना अपमान समझती है और शिवचरण को बताने की धमकी भी देती है।

हरिलक्ष्मी अपने गुस्से और जलन में शिवचरण से शिकायत करते हुए विपिन और मंझली बहु पर कई झूठे आरोप लगाती है पर अब तक वह अपने पति के स्वभाव से अच्छी तरह परिचित नहीं थी। शिवचरण सबकुछ सुनने के बाद कहता है कि पांच-छः माह बाद देखना। हरिलक्ष्मी चाहती थी कि मंझली बहु को सजा मिले पर जब वह उन आरोपों को मन में दोहराती है तो पता चलता है कि उसने बड़ी भूल कर दी है।

शिवचरण बाहर जाकर विपिन से कहता है कि वह अपने जानवरों को उसकी जमीन से हटा लें पर विपिन यह बात समझ नहीं पाता क्योंकि वह जमीन विपिन की ही थी। उसकी पत्नी उसे पुलिस और अदालत के पास जाने को कहती है पर कोई फायदा नहीं होता। विपिन की गौशाला तोड़कर शिवचरण उस पूरी जगह को दीवार से घेर देता है। बुआ मंझली बहु से कहती है कि वह हरिलक्ष्मी से बात कर ले पर वह मना कर देती है। इसके एक माह बाद हरिलक्ष्मी फिर से बीमार पड़ जाती है। उसे पूरे एक वर्ष बाहर रहना पड़ता है। जाने से पहले लक्ष्मी अपने पति से एक बात कहना चाहती है पर नहीं कह पाती। वापस आने पर सारा गाँव उसे देखने आता है पर मंझली बहु नहीं आती। वह विपिन और उसकी पत्नी के बारे में जानना चाहती है पर अपने पति से पूछ नहीं पाती।

हरिलक्ष्मी नहा धोकर नीचे जाने वाली है पर बुआजी उसे प्रेम से बताती हैं कि शिवचरण ने उसे नीचे जाने से मना किया है। उसे भोजन ऊपर ही परोसा जाएगा। नौकरानी उसके लिए आसन तैयार कर देती है और मिसरानी उसकी थाली लगाकर चली जाती है। हरिलक्ष्मी बुआजी से नई मिसरानी के बारे में पूछती है तब वह बताती हैं कि यह विपिन की बहु है। लक्ष्मी यह सुनकर चौंक जाती है। वह समझ जाती है कि उसे ही आश्चर्यचकित करने हेतु यह सब किया गया है। तब बुआजी बताती हैं कि विपिन मर गया है।

हरिलक्ष्मी अब सकते में है। उसके हृदय में मंझली बहु के लिए सांत्वना और दया जैसी कई भावनाएं हैं परंतु स्वयं के लिए तो केवल एक ही है, घृणा। हरिलक्ष्मी पश्चाताप की ज्वाला में जलते हुए खाना-पीना तक छोड़ देती है।

एक दिन हरिलक्ष्मी जब ऊपर जा रही थी तब देखती है कि बुआजी मंझली बहु पर चिल्ला रही हैं और उस पर चोरी का इल्जाम भी लगा रही हैं। मंझली बहु चुपचाप बैठी है और एक बर्तन में कुछ खाना ढका रखा है। बुआजी लक्ष्मी को उसे दिखाते हुए न्याय करने को कहती है। सभी लोग तमाशा देखने इकट्ठे हो जाते हैं। लक्ष्मी को शर्म आने लगती है कि इतनी छोटी सी बात को लेकर तमाशा किया जा रहा है। उसकी आँखों से आँसू बहने लगते हैं। उसे ऐसा आभास होता है जैसे वह अपराधी है और मंझली बहु उसके पापों पर विचार-विमर्श कर रही है। सभी लोगों को उसकी चोरी का पता चल गया है। लक्ष्मी सभी को वहाँ से जाने को कहती है और खुद मंझली बहु के पास जाकर बैठ जाती है और कहती है कि मैं तुम्हारी जीजी हूँ और अपने आँचल से उसके आँसू पोंछ देती है।

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