भगवतीचरण वर्मा: चित्रलेखा ( सारांश-भाग 4)

भगवतीचरण वर्मा चित्रलेखा सारांश भाग 2

भगवतीचरण वर्मा: चित्रलेखा (सारांश-भाग 4)

भगवतीचरण जी के ज्ञान की थाह को इंगित करता चित्रलेखा उपन्यास जहाँ एक ओर हमारे सामने प्रेम और आत्मा के सम्बन्ध को स्थापित करता दिखाई देता है वहीं दूसरी ओर मनुष्य की निर्बलता का भी सुन्दर वर्णन करता है ।

सातवाँ परिच्छेद

सभा से लौटते हुए बीजगुप्त और श्वेतांक बातें कर रहे हैं। बीजगुप्त श्वेतांक से प्रश्न करता है कि उसने आज क्या देखा? श्वेतांक कहता है कि आज स्वामिनी ने कुमारगिरि को हराया और उसे इस बात की खुशी है। तब बीजगुप्त हँसते हुए कहता है कि उसे तो दुख है। श्वेतांक उसकी बात का मतलब नहीं समझ पाता। तब बीजगुप्त कहता है कि उसे जीवन का अनुभव नहीं है। वह इन बातों को नहीं समझ सकता। आज जीता कोई भी नहीं बल्कि दोनों ही हार गए।

अब दोनों बीजगुप्त के भवन पहुँच जाते हैं जहाँ बीजगुप्त श्वेतांक को अपने पास बैठा लेता है और उसे दोनों की हार का कारण समझाने लगता है। वह कहता है कि चित्रलेखा ऊँचे व्यक्तित्व वाली प्रभावशाली महिला है और कुमारगिरि विद्वान और योगी है। दोनों ही अपने साधनों को श्रेष्ठ मानते हैं। पर आज की घटना ने दोनों को ही बदल दिया।

इसके बाद बीजगुप्त श्वेतांक को चित्रलेखा के भवन उसकी मनोदशा जानने के लिए भेजता है। जब श्वेतांक वहाँ पहुँचता है तो उसे पता चलता है कि वह अभी तक वापस ही नहीं आई है। श्वेतांक कई घण्टों तक उसकी प्रतीक्षा करता है। आधी रात को चित्रलेखा वापस आती है। कपड़े बदलकर आने के बाद वह उससे इतनी देर तक जागे रहने का कारण पूछती है। श्वेतांक कहता है कि वह उसे जीत की बधाई देने आया था। जीत की बात सुनकर चित्रलेखा का मुंह उतर जाता है। वह कहती है कि यह उसकी जीत नहीं बल्कि बहुत बड़ी हार है।

चित्रलेखा उसे बताती है कि वह अभी कुमारगिरि की कुटिया से आ रही है। उसे कुमारगिरि को अपमानित नहीं करना चाहिए था क्योंकि उसका क्षेत्र दूसरा है। वह उससे क्षमा मांगने गई थी। श्वेतांक उसकी भावनाओं को समझ नहीं पाता। वह कहता है कि कुमारगिरि सभी को भ्रम में डाल रहा था। इसलिए तुमने जो किया वह ठीक था। तब चित्रलेखा कहती है कि भले ही उसका सत्य और ईश्वर काल्पनिक थे पर वह कल्पना भी तो शक्ति का रूप थी। मैंने बुरा किया। अब उसका फल मुझे भुगतना पड़ेगा।

चित्रलेखा श्वेतांक से कहती है कि वह उसे स्नेह करती है इसलिए उससे कुछ भी छिपाना नहीं चाहती। वह श्वेतांक से कहती है कि वह उसका भेद किसी को भी न बताए और उसकी सहायता भी करे। इसपर श्वेतांक हामी भरता है। चित्रलेखा उसे बताती है कि कुमारगिरि ने उसे प्रभावित कर दिया है। वह उससे प्रेम करने लगी है। ऐसा लगता है जैसे उनका सम्बन्ध कई जन्मों से है। यह सब सुनकर श्वेतांक को बीजगुप्त की बात समझ में आने लगती है। वह चित्रलेखा से पूछता है कि वह उसकी सहायता किस प्रकार कर सकता है? तब चित्रलेखा कहती है कि वह बीजगुप्त पर उसका भेद प्रकट न करे।

श्वेतांक बीजगुप्त के भवन में वापस आता है। बीजगुप्त अभी तक उसकी प्रतीक्षा कर रहा होता है। वह उससे देर से आने का कारण पूछता है श्वेतांक उसे बताता है कि स्वामिनी अपने भवन में नहीं थी। शायद उन्हें मंत्री चाणक्य ने आमंत्रित किया था। यह जानकर बीजगुप्त को थोड़ी राहत मिलती है क्योंकि उसे लगता है कि चित्रलेखा जरूर कुमारगिरि से मिलने गई होगी। आगे बधाई देने की बात पर श्वेतांक उसे कहता है कि चित्रलेखा को अपनी जीत पर दुख था। यह सुनकर बीजगुप्त दुख के साथ कहता है कि चित्रलेखा और कुमारगिरि दोनों ही परिस्थितियों में फंस गए हैं और भविष्य में अपनी साधनाओं को नष्ट कर लेंगे।

आठवाँ परिच्छेद

शाम चित्रलेखा का रथ बीजगुप्त के भवन के सामने रुका। बीजगुप्त वहां नहीं था और श्वेतांक बाहर जाने वाला था। तभी उसे पता चला कि चित्रलेखा बाहर आई है। वह बाहर आया। चित्रलेखा कहती है कि आज उसका मन उदास था इसलिए वह घूमने निकली थी। पर बीजगुप्त नहीं है तो वह ही उसके साथ चले। श्वेतांक उसके रथ पर बैठ गया। राजमार्ग में गुज़रते हुए चित्रलेखा को देखकर सभी सामन्त उसपर फूलों का हार फेंकते जिसे वह पहनकर उन्हें कृतार्थ करती जाती।

दूसरी ओर से बीजगुप्त का रथ आकर चित्रलेखा के रथ के पास रुकता है। बीजगुप्त चित्रलेखा के रथ पर आ जाता है और श्वेतांक उसके रथ को हाँकता है। रास्ते में बीजगुप्त चित्रलेखा से बहुत दिनों से उसके यहाँ न आने का कारण पूछता है। चित्रलेखा कहती है कि उसकी इच्छा नहीं थी। बीजगुप्त को यह सुनकर आश्चर्य होता है। वह फिर से इसका कारण पूछता है। वह कहती है कि कुछ दिनों से उसका मन उखड़ा हुआ है जिससे वह खुद को और अपनों को भूल सी गई है। अब तीनों बीजगुप्त के भवन पहुँचते हैं।

अंदर जाने के बाद श्वेतांक वहाँ से जाने लगता है पर बीजगुप्त उसे रोक लेता है। अब बीजगुप्त पुनः चित्रलेखा से उसके मन के खिन्न रहने का कारण पूछता है। चित्रलेखा कहती है कि वह बताने में असमर्थ है। तब बीजगुप्त कहता है कि उसे लग रहा है कि चित्रलेखा का प्रेम बदल गया है। इस बात को सुनकर चित्रलेखा सम्हल जाती है और कहती है कि उसे भ्रम हो रहा है क्योंकि उसका प्रेम सागर की तरह गम्भीर है। पर प्रकृति की परिवर्तनशीलता का नियम प्रेम पर भी लागू होता है। तब बीजगुप्त कहता है कि प्रेम का सम्बन्ध आत्मा से है जबकि प्रकृति का सम्बन्ध वासना से है। इस बात पर भी असहमत होते हुए चित्रलेखा अपने तर्क देती है। बीजगुप्त को लगता है कि चित्रलेखा और उसके बीच दूरी आ रही है। जब चित्रलेखा बीजगुप्त के गले में बाहें डाल देती है तो श्वेतांक जाने के लिए खड़ा हो जाता है। बीजगुप्त उससे कहता है कि वह रथ ना खुलवाए क्योंकि आज दोनों को निमंत्रण में जाना है।

नवाँ परिच्छेद

पाटलिपुत्र के वृद्ध सामन्त मृत्युंजय का सभी आदर करते थे। उनके पास धन और वैभव दोनों थे। उनकी केवल एक कन्या थी जिसका नाम था यशोधरा। वह अठारह वर्ष की अत्यधिक सुंदर कन्या थी जिसके मुख पर गर्व की जगह लज्जा थी। मृत्युंजय उसके लिए वर खोज रहे थे। उनकी नजर बीजगुप्त पर पड़ती है। उन्हें अनेकों ने बीजगुप्त और चित्रलेखा के सम्बन्ध में बताया पर उन्होंने हमेशा यही कहा कि यह बीजगुप्त के भ्रमित होने का समय है। उस दिन यशोधरा के जन्मदिन पर मृत्युंजय के भवन में उत्सव था। उसी में बीजगुप्त के साथ चित्रलेखा को भी आमंत्रित किया गया था। बीजगुप्त चित्रलेखा को निमंत्रण की बात बताते हुए आश्चर्य प्रकट करता है कि उसके साथ चित्रलेखा को भी बुलाया गया है। चित्रलेखा अपनी स्थिति को जानकर आने से मना करती है पर बीजगुप्त उसे उसपर विश्वास रखने को कहता है।

श्वेतांक के साथ वे दोनों मृत्युंजय के द्वार पर पहुँचते हैं जहाँ मृत्युंजय यशोधरा के साथ उनका स्वागत करते हैं। वहाँ कई घटनाएं होती हैं जैसे युवतियों के चित्रलेखा को ताना मारना, बीजगुप्त व यशोधरा का वीणा पर बागीश्वरी आलाप, मृत्युंजय का कल्याण राग व यशोधरा का गायन और अंत में चित्रलेखा का नृत्य। परन्तु इस नृत्य के बीच में कुमारगिरि का विशालदेव के साथ आगमन होता है तब मृत्युंजय वीणा रखकर उनके स्वागत के लिए उठ जाते हैं जिससे क्रोधित हो चित्रलेखा वहाँ से जाने लगती है परन्तु यशोधरा के आग्रह पर वह दुबारा नृत्य करती है। कुमारगिरि यशोधरा को देखते हैं और मन ही मन चित्रलेखा के साथ उसकी तुलना करने लगते हैं।

इसके बाद सभी भोजन करने के लिए बैठते हैं। तब बीजगुप्त यशोधरा को उसके साथ परिचय की बधाई देते हैं। चित्रलेखा इस परिचय को घनिष्ठता में बदलने की कामना करती है। फिर यशोधरा श्वेतांक को देखकर उसके बारे में बीजगुप्त से पूछती है। तब बीजगुप्त बताता है कि वह उसका सेवक और छोटे भाई के समान है जिसे उसके गुरु ने पाप को जानने के लिए उसके पास छोड़ा है।

यशोधरा को श्वेतांक भोला-भाला और सुंदर लगता है। भोजन के बाद बीजगुप्त मृत्युंजय से श्वेतांक का परिचय कराता है।

चुनिंदा पंक्तियाँ :-

# सुन्दर मुख का प्रत्येक भाव-परिवर्तन सुन्दर होता है; विषाद का पीलापन लिए हुए वह वेश भी श्वेतांक को बड़ा मोहक लगा, और विशेषतः इसलिए कि उसके पीले मुख पर सहस्त्रों दीप-शिखाओं का प्रकाश पड़ रहा था।

# कल्पना के उद्यान में भय के तप्त वायु का झोंका था; सुख के साम्राज्य में दुख की क्रान्ति थी। श्वेतांक को देखकर बीजगुप्त मानो नींद में चौंक उठा-“तुम आ गए। पर बहुत देर लग गई।”

# श्वेतांक, यह याद रखना कि मनुष्य स्वतन्त्र विचारवाला प्राणी होते हुए भी परिस्थितियों का दास है। और यह परिस्थिति-चक्र क्या है, पूर्वजन्म के कर्मों के फल का विधान है।

# प्रेम का सम्बन्ध आत्मा से है। प्रकृति से नहीं। जिस वस्तु का प्रकृति से सम्बन्ध है, वह वासना है, क्योंकि वासना का सम्बन्ध बाह्य से है।

# अपने सौंदर्य के बल से, अपना स्वागत कराने के लिए, अभिमानिनी स्त्रियों को बाध्य करनेवाली को बधाई की कोई आवश्यकता नहीं।

# चित्रलेखा की मादकता भयानक थी-उसका नृत्य उसकी सजीवता की प्रतिमूर्ति; पर साथ ही यशोधरा की शान्ति अथाह सिंधु की भाँति थी,जिसमें पड़कर मनुष्य अपने को भूल जाता है।

अगले भाग में हम देखेंगे कि जब मृत्युंजय बीजगुप्त के सामने विवाह का प्रस्ताव रखते हैं तो कैसी परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।

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